SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 451
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४६ तत्त्वार्थचिन्तामणिः चार आदि में रहनेवाला परिणाम है, या धूपघटके ऊपर देशमें उष्णस्पर्शका तादात्म्य अव्यापक है । उसी प्रकार चेतन और जब द्रव्यों का परिणामविशेष हो रहा तादात्म्यसंबंध भी चेतनरूप और जडस्वरूप है, बद्ध संसारो आत्मा के साथ कर्म नोकर्मके संबंधसे हुयो मतिज्ञान, क्रोध, मनुष्यगति, अज्ञान, लेश्या आदि पर्यायोंका वादास्य संबंध चेतन अचेतन स्वरूप है । इस प्रकार वह तादात्म्यसंबंध अनेक प्रकारसे सिद्ध है । नयायिकों के मत के अनुसार एक नहीं है और न एकांतसे अमूर्त या सर्वगत है किंतु मूर्त और असर्वगत भी है, द्रव्यों में अनेक पर्याये उत्पन्न होती रहती हैं। अतः जिस प्रकारके वे द्रव्य है, उसी ढंगके उनके तादात्म्यसंबंध भी हैं, जैसे नैयायिकों का माना हुआ नित्य, एक हो रहा और अनेकों में रहनेवाला सामान्य पदार्थ कोई स्वतंत्र तत्व नहीं है, किंतु पुगलका सदृशपरिणामरूप सामान्य पुद्गल तत्त्व है और जीवका समान परिणामरूप जीवत्व जाति जीव तत्त्व है, उसी प्रकार तादात्म्यसंबंध मी कोई स्वतंत्र छठा पदार्थ नहीं है । द्रव्य, गुण और पर्यायोंसे अतिरिक्त चौथा पदार्थ संसार मे कोई नहीं है। जिन द्रव्योंका या भावोंका जो संबंध है, वह उन द्रव्य और उन मावस्वरूप ही है । इस प्रकारका कथञ्चित् तादात्म्यसंबंध नैयायिक द्वारा माने गये शक्ति और शक्तिमान्के सर्वथा भेदको सबै प्रकारसे नष्ट कर देता ही हैं । फिर म अधिक चिंता क्यों करें। * ततोऽर्थग्रहणाकारा शक्तिर्ज्ञानमिहात्मनः । करणत्वेन निर्दिष्टा न विरुद्धा कथञ्चन ॥ २२ ॥ कारण आत्माकी विकल्प स्वरूप अर्थग्रहणके संचेतनको धारण करनेवाली शक्ति ही यह ज्ञान मानी गयी है और वही शक्ति ज्ञति क्रियाका करण होकर कही गयी है किसी भी प्रकारसे वह विरुद्ध नहीं है । अर्थात् ज्ञानका और शक्तिका अभेद है तो प्रमाणज्ञान के समान ल रूप शक्ति भी प्रमितिका करण हो जाती है । न अन्तरङ्गबहिरंगा ग्रहणरूपाऽऽत्मनो ज्ञानशक्तिः करणत्वेन कथञ्चिन्निर्दिश्यमाना विरुष्यते, सर्वथा शक्तिवद्वतोर्भेदस्य प्रतिननात् । ज्ञान, सुख, आला, इच्छा, पीडा आदि अंतरंग पदार्थ और घट, पट, मिति आदि बहिरन पदार्थों को ग्रहण करना रूप आत्माकी ज्ञानशक्ति किसी अपेक्षासे करणपने करके कथन कर दी गयी विरोधको प्राप्त नहीं होती है। क्योंकि शक्ति और शक्तिमान के सर्वथा भेद माननेके पक्षका हमने खण्डन कर दिया है । ननु च ज्ञानशक्तिर्यदि प्रत्यक्षा तदा सकलपदार्थशक्तेः प्रत्यक्षत्वप्रसंगादनुमेयत्वविरोधः । प्रमाणभाषितं च शक्तेः प्रत्यक्षत्वम्, तथाहि -ज्ञानशक्तिर्न प्रत्यक्षासदादेः शक्ति
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy