________________
तत्त्वार्षचिन्तामणिः
१२९
धानामप्रत्यक्षेवर्षेषु सद्भावोपगमात, तदनुपगमे स्वसमयविरोधात्, न हि सांख्यादिसमयेऽसदाचप्रत्यक्षः कश्चिदर्यो न विद्यते ।
___ मोक्ष तत्त्व सर्वथा है ही नहीं (प्रतिज्ञा ) क्योंकि यह प्रमाणोंसे नहीं माना जारहा है ( हेतु ) जैसे कि गर्दभके श्रृंग ( अन्वयदृष्टांत ), इस प्रकार कोई शून्यवादी या चावोंक कहे सो तो ठीक नहीं है। क्योंकि मोक्ष विषयमै सम्पूर्ण प्रमाणोंकी नित्ति नहीं देखी जाती है। इस कारण चाचाकोंका दिया गया अनुपलब्धि हेतु असिद्ध हेत्वाभास है । आगम और अनुमान प्रमाणसे मोक्षकी शति होनेको हम पहिले सिद्ध कर चुके हैं।
यदि आप मोक्षके निषेध करनेमें प्रत्यक्षप्रमाणकी निवृत्ति होना रूप अनुपलब्धि हेतु देगे तो अमावको साधनेके लिये दिया गया आपका प्रत्यक्षनिवृत्तिरूप हेतु व्यभिचारी हो आवेगा। क्योंकि सम्पूर्ण सज्जन वादी प्रतिवादियोंने हम लोगों प्रत्यक्षसे न जाने जावे पेसे अनुमेय और आगभगम्य पदायाँका भी सद्भाव स्वीकार किया है। जिन पदार्थाका प्रत्यक्ष नहीं होता है यदि उनका सदाव न स्वीकार करोगे तो आपको अपने सिद्धांतसे ही विरोध हो जावेगा । सूक्ष्मपरमाणु, दूसरोंकी आत्माएं, भाकाच, पुण्य, पाप आदि पदार्थों को समी स्वीकार करते हैं। सांख्य, वैशेषिक, बौद्ध मादिके सिद्धांतों में हम लोगोंके प्रत्यक्षसे जाने न जावे ऐसे कोई अर्थ है ही नहीं, यह नहीं समझना चाहिये । मावार्थ-सर्व ही सम्प्रदायों में और पदार्थविज्ञान ( साइन्स ) में मी इंद्रियोंके भगोचर होरहे शक्ति, परमाणु भादि अनेक पदार्थ माने गये हैं।
चार्वाकस्य न विद्यत इति चेत् , किं पुनस्तस्य स्वगुरुप्रभूतिः प्रत्यक्षः। कस्यधिप्रत्यक्ष इति चेत्, भवतः कस्यचित्प्रत्यक्षता प्रत्यक्षा न वा । न तावत्प्रत्यक्षा, अतीन्द्रिपत्वात् , सान प्रत्यक्षा चेत् यद्यस्ति तदा तयैवानुपलब्घिरनैकान्तिकी, नास्ति चेत् तर्हि गुर्वोदया कस्यचिदमत्यक्षाः संतीत्यायातम्, कथं च तैरनैकांतानुपलब्धिर्मोक्षाभावं साधयेचतो मोक्षोऽप्रसिद्धत्वाद्यथोक्तलक्षणेन लक्ष्यो न भवेत् ।
यहां कोई कहे कि हम लोगोंके प्रत्यक्षका अगोचर पदार्थ. चार्वाक के सिद्धांसमें विद्यमान नहीं है। चार्वाक तो अकेला प्रत्यक्ष प्रमाण और प्रत्यक्षके विषय पदायाँको ही मानते हैं। इसपर हम जैन पूंछते हैं कि क्या फिर उस चावाकको अपने गुरु बृहस्पति या माता, पिता, और बाबा, पहबाबा, इत्यादि पचासों पीढ़ियों के पुरिखाओंका प्रत्यक्ष है ! बताओ। इस प्रकार प्रत्यक्षके अगोचर पदार्थ भी चार्याकको मानने पड़ेंगे । अन्यथा वह माता पिता की उच्च आचरणवाली संतानसे रहित होकर कार्यकारण भावका भंग करनेवाला समझा जावेगा।
___यदि चार्वाक यों कहे कि हमको व्यक्तिशः अपने गुरुपरिपारी या पुरानी पीढियोंके पुरिसाओंका प्रत्यक्ष न सही, किंत उस कालमें और उस देशमें होनेवाले अनेक प्रत्यक्ष कर्ताओं को उनका