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________________ सवा चिन्तामणिः ---NN-Muadanvr मोक्षमार्गको जाननेकी इच्छा की थी और वह जीव सिद्ध भवस्था अनंत काम तक रहेगा। यह व्यवस्था स्याद्वादसिद्धांतमें ही बनती है। अनेक अतिशयोंको छोडना और अनेक चमत्कारोंका कारण करना यह परिवर्तन आलाको अनेकांत स्वरूप माननेपर सिद्ध हो जाता है, जिस जीवके काललब्धि प्राप्त हो गयी है, काँका भार लधु हो गया है, उसके मोक्षमार्गको बाननेकी इच्छा हो . जाती है । वह विनीत भव्य जीव, महात्मा मुनींद्रपुरुषोंसे उपदेशको प्राप्त कर उसकी साधना करता हुआ इष्ट पदको प्राप्त कर फेता है। जिज्ञासा, संशय प्रयोजन वादिसे विशिष्ट शिष्यको उपदेश दिया जाता है। किंतु उपदेश सुननेवाले के विज्ञासाका होना अस्थावश्यक कारण है। भाचार्यने मोक्षका कथन न करके मोक्षमार्गका कथन प्रथम क्यों किया : इसपर आचार्य महाराज उत्तर देते हैं कि प्रायः सम्पूर्ण धादियों के यहां आत्माकी शुद्ध अवस्थाका हो जाना मोक्ष इष्ट किया है। मोक्षको सबने मान्य किया है। मोक्ष सामान्यके विषय विशेष विवाद नहीं है। अर्थात् मोक्षको मायः सर्व संप्रदायवाले इष्ट करते हैं। परंतु मोक्षके मार्गके संबंध विवाद है। कोई भक्ति से मुक्ति, और कोई शानसे मुक्ति और कोई कर्मसे मुक्ति, इस प्रकार एकांतसे मानते हैं। अतः शिष्यको मोक्षमार्गके जाननेकी इच्छा उत्पन्न हुयी है। जो शूल्यवादी या उपप्लववादी मोक्षको सर्वथा स्वीकार नहीं करते हैं, उनको इस ग्रंथके अध्ययन अध्यापन करनेमें अधिकार नहीं है । मोक्षको हम आगमसे भी आन लेते हैं। जैसे कि पञ्चाङ्ग द्वारा या गणितके नियमोंसे सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, संक्राति भाविको जान लेते हैं। आगमको प्रमाण माने विना गूंगे और बोलनेवाले कोई अन्तर नहीं है । आगमको प्रमाण माने बिना कोई भी प्रकृष्ट विद्वान् नहीं बन सकता है । पेटमसे निकलते ही कोई, पण्डिस नहीं हो जाते हैं । जिन्होंने जन्म लेते ही श्रुतज्ञानप्राप्त कर लिया है, उन्होंने मी पूर्वजन्ममें आगमका बहुत अभ्यास किया था। " यही मेरे पिता हैं । इस ज्ञानको करनेके लिये आधुनिक युगमें मातृशक्यके अतिरिक्त दूसरा कोई उपाय नहीं है। नास्तिकोंको भी आगमकी शरण लेनी पडती है । निदोष वकासे कहा गया आगम प्रमाण है । अनुमान प्रमाणसे मी मोक्ष बाना बा सकता है । अतः निकटभव्य जीवके मोक्षमार्गको जाननेकी उस्कट भभिलाषा होनेपर सूत्रका अवतार करना अत्यावश्यक है । परोपकार करनेवाले आचार्य महाराज अनेक विवादोंका निराकरण करते हुए शिष्यकी अभिलाषाको पूर्ण करनेकेलिये “ सम्यग्दर्शनहानचारित्राणि मोक्षमार्गः " इस चिन्तामणि रस्नस्वरूप सूत्रका प्रकाश करते हैं सिद्धान्तनास्त्रोदधिसाररला । सस्वार्थपत्रात्स्वपरात्मनीना ॥ राप्तिाचानि बुधाः प्रपछ । युजन्तु निर्वाणपयवेके ॥१॥
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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