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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
चक्र, मौरा, चकई, के आगे पीछे, बीजमे होनेवाले सब ही भ्रमण कुम्हार या बालकके हाथ के व्यापारको कारण लेकर ही उत्पन्न हुए हैं, यह नहीं समझना । किंतु सबसे पहिला ही वह भ्रमण इस प्रकार कुम्हारके हाथके व्यापारसे उत्पन्न हुआ है और चाकके आगे आगे भविष्य मे होनेवाले अनेक भ्रमण तो पहिले पहिले भ्रमणोंके द्वारा संस्कार किये गये वेगले बने हुए देखे जाते हैं। उत्तरकालमें होनेवाला वह चत्र का भ्रमण अपने कारण वेगके न होनेपर बराबर उत्पन्न होजाता है, यह नहीं समझना। क्योंकि उस वेगके होनेपर ही भविष्यके परिभ्रमणोंकी अच्छी उत्पत्ति देखी जाती है । इसकारण उस चक्र आदिके परिभ्रमणसे हमारे हेतुका व्यभिचार दोष नहीं है । भावार्थ- पत्रके पहिले घूमनेका कारण कुम्मकारका हाथ है और दूसरे, तीसरे आदि घूमका कारण परम्परासे कुम्मकार, साक्षात्कारण पूर्व घूमोंसे पैदा किया गया वेग है। प्रत्येक घूमके निकल जानेर पहिले समयका वेग न्यून होता जा रहा है । अन्तिम घूममै वह वेग इतना निर्मल पढ जाता है या नष्ट हो जाता है जिससे कि उससे आगे चाक या लट्टूमै भ्रमण पैदा नहीं होता है । अतः हमारे कार्यकारण भावकी अक्षुण्ण प्रतिष्ठा बनी रही।
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पावकापायेपि घूमेन गोपाल घटिकादि पुपलभ्यमानेनानैकान्त इत्यप्यनेनापास्तम् ।
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इन्द्रजालिया या ग्वाले घडे में अथवा रेलगाडीके निकलजानेपर मार्गमें धूम विद्यमान है किन्तु उसका कारण मंमि नहीं है । इत्यादि स्थलों में यों अभिके नहीं रहनेपर भी घूम पाया गया साध्याभाववद्वृत्तित्वं " अतः यह फिर भी आपका हेतु व्यभिचारी हुआ । इस प्रकार किसका कथन भी इसी पूर्वोक्त निर्णय कर देनेसे खण्डित हो जाता है । मावार्थ- सबसे पहिला घूम अमिसे उत्पन्न हुआ है। उसका अभिके साथ अन्वयव्यतिरेक है। उस धूमको पृथक् करके कहीं रख देनेपर धूमकी उत्तर पर्याय स्वरूप आगे होनेवाले अनेक अन्य धूम तो उस पहिले धूमकी वारा ही उत्पन्न हुए हैं। तभी हो धूमसे अभिकी सिद्धि करनेमें धुआंकी अभिसे चुपटी हुयी मूलरेखाका न टूटना धूमका विशेषण माना गया है । अभ्यथा अभिके बिना भी षडेने बन्दकर कई दिन तक धुंआ ठहर जाता है। वह घूम भी हेतु बन जाता, जो कि इष्ट नहीं है ।
शरीरमानसासातप्रवृतेः परापरोत्यतेरुपायप्रतिषेध्यत्वात्, संचितायास्तु फलोपभोगतः प्रक्षयात् । न चापूर्वधूमादिप्रवृत्तिः स्वकारणपावकादेरभावेऽपि न निवर्तते यतो व्यभिचारः स्यात् ।
शरीर और मनकी असाठा दुःखरूप प्रवृत्तियों का उत्तरोत्तर कालमें धाराप्रवाह करके उत्पन्न हो जाना भी गुप्ति, समिति, धर्म, आचरण आदि उपायोंसे निवृत्त हो जाने योग्य है । भावार्थ — द्रव्यकर्म भावकर्म और भावकर्मसे द्रव्यकर्मकी घाराका भविष्य में बहना तो मुति तप आदि उपायोंसे रोक दिया जाता है । और पहिले सञ्चित कमके उदय होनेपर होनेवाली असावा -: