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________________ तत्त्वार्थचिन्तामणिः नियत समय अथवा नियंत प्रमाण या फलरूपसे सूर्य, चंद्रमा के ग्रहण के साथ व्याप्ति रखता हुआ, कोई पदार्थ जाना नहीं जासकता है । अर्थात् सामान्य रूप से ग्रहण के साथ व्याप्ति रखनेवाला कोई हेतु मलें ही मिल जाये, किंतु अमुक दिवासे, अगुक गया चंद्रग्रहण होगा और अमुक राशिवालेको शुभ अथवा अशुभ फलका सूचक होगा, इन विशेष अंशोंके साथ व्याधि रखनेवाला हमारे पास कोई हेतु नहीं हैं। जिसके साथ साध्यकी व्याप्ति समझी जा सके । अतः इन विशेष आकारोंके जानने में आगम ( ज्योतिष शास्त्र ) की ही शरण लेनी पडती है । हमने केवल सूर्यमणका दृष्टांत नहीं दिया है, किंतु उसके विशेष आकारको उदाहरण बनाया है । I ४०४ .... ********* , विशिष्टाङ्कमाला लिंगमिति चेत् सा न तावत्सत्स्व भवस्तद्वदु प्रत्यक्षत्वप्रसङ्गात्, नापि तत्कार्य ततः प्राकू पश्चाच्च भावात् । यदि कोई यों कहे कि ज्योतिषी लोग ग्रहण के समय दिशा आदि निकालने के लिए गणित से एक, दो, तीन, चार आदि अकोंके जोड गुणा, भाग करके ठीक प्रमाण निकाल लेते हैं, वह शेष की माला ही विशेष आकारोंका ज्ञापक हेतु हो जावेगी । ऐसा कहनेपर तो हम जैन पूछते हैं कि वह अंकमाला स्वभाव हेतु है या कार्यहेतु है । बताओ । उसको स्वभाव हेतु मानना तो ठीक नहीं है, क्योंकि साध्यरूप विशेष आकारोंका स्वभाव वह अंकमाला होगी तो उस आकार विशेषस्वरूप साध्यके समान प्रत्यक्षसे न जानी जा सकेगी । अर्थात् हेतुको भी अनुमेय होने का प्रसंग श्रा जायेगा, और जबतक हेतुका ही प्रत्यक्ष न होगा तो वह साध्यका पक कैसे हो सकेगा ! | शिशपाको प्रत्यक्षसे जाननेपर ही उस स्वभाव हेतुसे वृक्षपनेका अनुमान हो जाता है अथवा उष्णताके प्रत्यक्ष होनेपर अभिका अनुमान होता है । दूसरे पक्षके अनुसार यदि satara उस ग्रहणके विशेष आकारका कार्य मानोगे सो भी ठीक नहीं है। क्योंकि पट्टीके ऊपर गणित के अंकोंका लिखना ग्रहण के बहुत काल पहिले और बहुतकाल पीछे भी होता है । अनेक के पूर्व हुए सूर्य, चंद्रग्रहण भी गणित से निकालकर बताये जाते हैं तथा दस बीस महीने पहिले ही पञ्चाङ्ग बनाकर सूर्य चंद्रग्रहण बता दिये जाते हैं । किंतु कार्य हेतु तो कारण के अव्यवहित उत्तर काल होना चाहिये | बहुत देर पहिले और वहुत देर पीछे होने वाले ग्रहणोंके आकाशका कार्य मला अंकमाला कैसे हो सकती है ? अर्थात् नहीं | " सूर्यादिग्रहणाकारमेदो साविकारणं विशिष्टाङ्कमालाया इति चेन, भाविनः कारणवायोगात् भावितवत् कार्यकाले सर्वथाप्यसच्चादतीततभवत् । यदि यहां कोई भविष्य कारणवादी बौद्ध मतके अनुसार यों कड़े कि भविष्य में होनेवाले सूर्य चंद्र ग्रहण के आकारोंका मेद ही विशिष्ट अंकमालाका भावी कारण है, अर्थात् जैसे भविष्य में होनेवाला राज्य पहिलेसे ही हथीली में हाथी मछली आदिके चिन्ह बना देता है, वैसे हो पट्टीपर
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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