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________________ तस्वार्थ चिन्तामणिः समझिये साधारण जीवोंको मोक्षका प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं हो सकता है। इस कारण वह मोक्ष परोक्ष है । फिर भी वह मोक्ष बाधारहित आगमप्रमाण द्वारा ( हेतु ) सम्पूर्ण वादियोंसे अच्छी तरह निर्णीत कर लिया जाता है ( प्रतिज्ञा ) जैसे कि भविष्य फालमै होनेवाले सूर्य, चंद्रमा के ग्रहण और उनके अनेक भिन्न भिन्न आकारोंका ज्योतिषशास्त्रसे निश्चय कर लिया जाता है (अन्नमदृष्टांत ) ४०३ परोक्षोऽपि हि मोक्षोsस्माहशामागमाचः सम्प्रतीयते यथा सांवत्सरैः सूर्यादिग्रहृणाकारविशेषस्तस्य निघत्वात् न हि देशकालनरांतरापेक्षयापि बाधातो निर्गतोयमागमो न भवति, प्रत्यक्षा देवधकस्य विचार्यमाणस्यासम्भवात् नापि निर्बंधस्याप्रमाणस्वमास्थातुं युक्तम्, प्रत्यक्षाद रप्यप्रमाणत्वानुषक्तेः । स्थूल बुद्धि हम सरीखे पुरुषोंको मोक्ष यद्यपि परोक्ष है तो भी उस श्रेष्ठ आगमको जाननेवाले विज्ञानों द्वारा बार ये जान लिया जाता है। जैसे कि अनेक वर्षोंकी आगे पीछेकी बातोंको बतानेवाले ज्योतिषी विद्वानोंसे सूर्य, चंद्रमा ग्रहणका, लम्बाई, चौडाई, अल्पग्रास, खग्रास, पूर्व दिशासे या पश्चिम दिशासे राहू, केतुके विमानका जाना आदि विशेष आकार जान लिया जाता है, क्योंकि वह ज्योतिषशास्त्र बाधारहित होनेसे आगम पमाण रूप है । अन्य देश या भिन्न काल अथवा दूसरे मनुष्योंकी अपेक्षासे भी यह आगम बाबाओंसे रहित नहीं है, यह बात नहीं कह बैठना। क्योंकि इस आगमके प्रत्यक्ष, अनुमान प्रत्यभिज्ञा आदि प्रमाण बाधक हैं, यह बात विचार किये जानेपर असम्भव हो जाती है । भावार्थ - इस आगमका कोई प्रमाण बाधक नहीं है । और जो बाधाओंसे रहित है, उसको अप्रमाणपनेकी व्यवस्था करना मी युक्त नहीं है । अन्यथा यदि ऐसी पोल चलेगी तब तो निर्वाध प्रत्यक्ष, अनुमान आदि प्रमाणों को श्री अप्रमाण बन जानेका प्रसंग आवेगा और ऐसी उत्क्रांतिके समय प्रमाणाभास रूप ज्ञान प्रमाणताको लूटने के लिये हाथ फैला देवेंगे ! सूर्यादिग्रहणस्यानुमानात्प्रतीयमानत्वाद्विषमोय सुपन्यास इति चेत् न, तदाकारविशेषलिंगाभावादनुमानानवतारात्, न हि प्रतिनियतदिग्वेलाप्रमाणफलतया सूर्याचन्द्रमसोर्ग्रहणेन व्याप्तं किंचिदवगन्तुं शक्यम् । यहां कोई कहते हैं कि मोक्षको आगमसे जाननेमें आप जैनोंने सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहणका दृष्टांत दिया, किंतु यह कथन करनेवाला आपका दृष्टांत तो विषम है। कारण कि सूर्य, चंद्रमा के ग्रहणोंका हम लोग अनुमान प्रमाणसे निश्चय कर लेते हैं और मोक्षका निर्णय आगमके विना अनुमा नसे किसी भी प्रकार नहीं होता है । अंथकार कहते हैं कि सो यह कहना तो ठीक नहीं है। क्योंकि ★ उस सूर्य ग्रहण के आकार विशेषोंको जाननेके लिये कोई अविनाभावी हेतु नहीं है । अतः सूर्य अणके विशेष आकारोंको जानने के लिये अनुमान प्रमाण नहीं उतरता है । नियत दिशा या
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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