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________________ १०० तत्त्वार्थचिन्तामणिः ही आत्माका स्वामाविक रूप है । उस स्वाभाविक रूपके विपरीत ( विरुद्ध ) होकर विगाउनेवाले बुद्धि आदि नौ विशेष गुप्पोंका आत्माके साथ समवाय संबंध हो जाना है । वह संबंध मोक्षकी प्राप्तिका प्रतिबंध कर रहा है । तत्त्वज्ञानके द्वारा मिथ्याज्ञान, दोष, प्रवृत्ति, जन्म, दुःखके नाश क्रमसे नौ गुणों के उस संबंधका सदाके लिये नाश हो जानेसे आकाशके समान अचेतन व्यापक आत्माफी स्थिति रह जाना उत्कृष्ट मुक्ति है । इस प्रकार अन्य नैयायिक और वैशेषिकों का मत है । इनके यहां जीवन्मुक्ति रूप अपर मोक्षम ज्ञान, इच्छा, प्रयल आदिका संबंध बना रहता है । ईश्वरमे भी आठ गुण रहते हैं । पहिले नौमसे ज्ञान इच्छा और प्रयत्न तथा पांच सामान्य गुण हैं। मुक्तमै ५ पांच सामान्य गुण हैं । मुक्त आत्मासे ईश्वरमै विशेषता है। परमानन्दात्मकमात्मनो रूपम्, बुद्धयादिसंबंधस्तरतिघाती, तदभावादानन्दात्मकतया स्थिति परा नितिरिवि च मीमांसकानाम् । उत्कृष्ट आनंद स्वरूप रहना ही आत्माका निज-स्वभाव है, संसार दशा, आत्माके साम बुद्धि, इच्छा आदिका संबंध उस प्रकृष्ट आनंदका विघात करनेवाला है। अच्छा कर्मकाण्ड करनेपर बुद्धि आदिक संघका नाश हो जानेपर आनंद स्वरूपसे नित्य आत्माका सित रहना ही उत्कृष्ट मोक्ष है, इस प्रकार मीसांसकोंका कथन है। नै नितिसामान्ये कल्पनाभेदो यतस्तत्र विवादः स्यात् । मोक्षमार्गसामान्येऽपि न भवादिनां विवादः, कल्पनाभेदाभावात् । सम्यम्बानमात्रात्मकत्वादावेव तद्विशेषे विमतिपत्तेः। तखो मोक्षमार्गेऽस्य सामान्ये प्रतिपित्सा बिनेयविशेषस्य मामृत इति चेत्, सत्यमेतव, निर्वाणमार्गविशेष प्रतिपित्सोत्पत्तेः । कथमन्यथा तद्विशेषमतिपादन सूत्रकारस्प प्रयुक्त स्यात् । मोक्षमार्गसामान्ये हि विपतिपत्रस्य तन्मात्रपतिपित्सायाम-'स्ति मोक्षमार्ग इति वो युज्येत, विनयप्रतिपित्सानुरूपत्वात् सूत्रकारप्रतिवधनस्य । अपर कहे अनुसार मोक्षके विशेष स्वरूपों में ही जैसा बौद्धादिकोंका विवाद है, इस प्रकार मोक्षके सामान्य स्वरूपमे किसीकी कल्पना मिन्न मिन्न नहीं है, जिससे कि वहां विवाद होता। आत्माके स्वामाविक स्वरूपकी प्राप्तिको मोक्ष सब ही मानते हैं। यहां कोई पूर्वपक्ष करता है कि मोक्षमार्गके भी तो सामान्य स्वरूप बौद्ध आदिक प्रवादियों का विवाद नहीं है। क्योंकि मोक्षमार्गके सामान्यस्वरूपमें भी मीमांसक आदिकोंकी मिन्न भिन्न कल्पनाएं नहीं हैं। हां ! मोक्षमार्गके उस विशेष अंशमें अवश्य झगडा है। कोई अकेले सम्याज्ञानसे ही मोक्ष होना मानते हैं। दूसरे लोग ज्ञान और चारित्रसे ही,एवं तीसरे श्रद्धान और चारित्रसे ही, चौथे अकेले श्रद्धानसे ही मोक्ष होना स्वीकार करते हैं। इत्यादि प्रकारसे मार्गके विशेष अंशों में ही अनेक विवाद हैं । तिस कारण इस विलक्षण शिष्बकी मोक्षमार्गके सामान्य मी समझनकी इच्छा न होवे जैसे कि मोक्ष सामान्पकी
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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