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टीकाकार के प्रति कृतज्ञता अभीतक इस यज्ञ कठिन ग्रंथकी भाषा टीका व टिप्पणी नहीं की गयी थी । अतएव स्वाध्यायप्रेमियों को इसके रहस्यमय चमत्कारी कठिन प्रमेयोंके परिज्ञानकी उत्सुकता सैकड़ों वर्षोंसे बनी आरही थी । किंतु अब पूज्य पण्डित माणिकचंदजीके शुभ्र पुरुषार्थसे हिंदी टीका पूर्णरीत्या feorea हो चुकी है। इसमें से केवल एक ही सूत्रकी व्याख्या प्रथम खण्ड में आपके सन्मुख प्रस्तुत की जारही है | वीरमुखोत्पन्न गणघरग्रंथित जिनवाणीमाताके अश्रुतपूर्व अनुपम वाङ्मयको समसाद् निरखिये |
अभी तो इस मुद्रित प्रथम खण्ड में पहिले अध्यायके अकेले आदि सूत्रकी ही व्याख्या है, अन्य सूत्रों और अध्यायोंकी श्लोकवाचिक टीका में अनन्त अपनुम तत्त्वज्ञान मरा हुआ है, जो कि क्रमशः मुद्रित होता रहेगा। पूरे ग्रंथ में पांच हजार पृष्ठ है। प्रति पृष्ठ में पचीस या अट्ठाईस श्लोक प्रमाण लेख है । इतना विशाल दर्शन ग्रंथ अभ्यत्र अप्राप्य है । इस अठारह हजार श्लोक प्रमाण पूरे ग्रंथी हिंदी पोसे भी अधिक इलोक प्रमाण पांच वर्ष पूर्व परिपूर्ण कर दी गयी है। जिसकी प्रेस कापी श्रीमान् धर्मबीर रा. व सरसेठ मागचंदजी महोदय के अजमेर के ग्रंथ भण्डारमै टीकाकार द्वारा विराजमान हो चुकी है। पण्डितजीकी यह इस्तलिखित काफी अटीव शुद्ध है | सुंदर लिखी गयी है ।
जैनदर्शन अगाध है एवं गंभीर है। उसके अथाइ अंतरतमें पहुंचकर अभ्यास करनेवाले विज्ञान भी विरले हैं तो सामान्यजनोंकी बात ही क्या है ! उसमें भी यदि न्यायशास्त्र तर्कवितर्कणाका मंडार हो तो उसे सामान्य जनता समझ भी नहीं पाती और उससे उपेक्षित होजाती है । ऐसी अवस्था में ऐसे महत्वपूर्ण ग्रंथोंको सरल रूपसे समझने के लिए यदि विस्तृत भाषा टीका हो तो जिज्ञासूत्रको बडी अनुकूलता दोसकती है। इसलिए आज इस महान् श्लोकवार्तिकालंकार ग्रंथकी राष्ट्रभाषात्मकटीका प्रकाशित होरही है, यह अत्यंत संतोषका विषय है ।
लोकवार्तिकालंकार सदृश महान् अंथकी सरल सुबोधिनी टीका लिखना कोई खेल नहीं है । विद्यानंद स्वामीकी अंतस्तलस्पर्शिनी विचारधारावोंको समझकर दूसरोंको समझानेवाला विद्वान्, भी असाधारण ही होना चाहिये। क्योंकि श्रीविद्यानन्द स्वामीकी पक्तिया छातीव कठिन, ग़म्भीर और तीक्ष्ण होती हैं ! जैनसंसार श्रीमान् तर्केरत्न पं. माणिकचंदजी न्यायाचार्य महोदय से अच्छी तरह परिचित है । न्यायाचार्यजी महोदयका परिचय लिखना अनावश्यक है। आज करीब ५० वर्षोंसे जैन समाजमै आप विद्वानोंकी सृष्टिमें अपने ज्ञानका उपयोग कर रहे हैं। स्वर्गीय पं. गुरु गोपालदासजी बरैयाने जिन विद्वानोंका निर्माणकर जैन समाजका उपकार किया है, आज समाज के विविधक्षेत्र में कार्य करनेवाले जो सैकडों प्रौढ विद्वान् पतीत होरहे हैं, उन सब विद्वानोंकी उत्प चिका प्रधानश्रेय श्री. पं. माणिकचंदजी न्यायाचार्य महोदयको है। श्रीगोपाल वि. जैन सिद्धांत विद्यालय में करीब १६ वर्ष प्रधान अध्यापक के स्थान पर रहकर आपने न्याय न सिद्धांत शास्त्रका अध्यापन कार्य किया