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अथ भी उपलब्ध होते हैं । (१) भास्करनंधाचार्य विरचित तत्वार्थवृत्ति (२) श्रुतसागर वृद्धि (३) द्वितीयश्रुतसागर विरचित तत्वार्थसुबोधिनी, टोका (४) विबुधसेनाचार्य विरचित तत्वार्थ टीका (५) योगींद्रदेव विरचित तत्वप्रकाशिका (६) मोगदेव विरचित तस्वार्थवृत्ति (७) लक्ष्मीदेव विरचित तत्वार्थटीका, (८) श्री अभयनंदि विरचित तत्वार्थवृत्ति ।
इस प्रकार जैनाम्नायपरंपरामें इस ग्रंथ के विस्तार में अनेक ग्रंथकारोवे अपने जीवनको सफल किया है । इसीसे इसका अतिशय स्पष्ट है
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प्रकृत ग्रंथ श्रीतत्वार्थश्लोकवार्तिकालंकारको रचना श्रीमहर्षि विद्यानंदस्वामीने की है। अनेक अंथकारोंके समान जैनदर्शन के विस्तार के लिए विद्यानंद स्वामीने भी इसी ग्रंथको आधार बनाया है, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है । उपर्युक्त आचार्य रत्नत्रयोके अनंतर इस तत्वार्थ सूत्रपर यदि महत्वपूर्ण भाष्यकी रचना हुई है तो श्री आचार्य विद्यानंद स्वामीकी यही कृति गौरवपूर्ण उल्लेख के द्वारा करने योग्य है । श्रीमहर्षि विद्यानंद स्वामीने इस प्रथमे प्रशस्त तर्क-वितर्क- युक्ति प्रयुक्ति व विचारणा के द्वारा सिद्धांतसमन्वित तत्वोंका प्रतिष्ठापन किया है। परवादियोंको विविध विचार परिप्लुत न्यायपूर्ण युक्तियोंसे निरुत्तर करनेके कारण अनेकांतमतकी व्यवस्था होती है। अनेकांत मतकी शरण गये विना लोकमे तत्वव्यवस्था नहीं हो सकती है । तस्वव्यवस्थाके विना मोक्ष पुरुषार्थकी साधना नहीं बन सकती है, इस बातको आचार्य महाराजने बहुत अच्छी तरह सिद्ध किया है। इस ग्रंथका प्रमेय सिद्धांत होनेपर भी आचार्यश्रीने न्यायशास्त्रकी कसौटीसे कसकर सिद्धांतको समुज्वलरूप से उपस्थित किया है | सुवर्ण अपने स्वभावसे स्वच्छ रहनेपर भी दहन, ताडन, भेद, वर्षण आदि सौमें उतरनेपर ही लोकादर के लिए पात्र होता है। इसी तरह स्याद्वाद् सिद्धांत लोककल्याण के लिए अनवध सिद्धांत है, इस सिद्धांतको प्रकृत ग्रंथमें आचार्य महाराजने सुलभ बनाकर तवजिज्ञासु भव्यों के लिए महान् उपकार किया है ।
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महर्षि विद्यानंद स्वामी विशेष परिचय, कालविचार, समकालीन मंथकर्ता, एवं उनकी अन्य रचनायें आदिके संबंध एवं तत्वार्थ सूत्रपर भाष्यकी रचना करनेवाले स्वामि समंतभद्र, पूज्यपाद व अकलंक सदृश रत्नत्रय महर्षियों के संबंध में विस्तृत विवेचनपूर्वक एक बडी प्रस्तावना खिखनेका विचार था । परंतु पाठको में प्रथम मागके प्रकाशनकी आतुरता होनेसे, कुछ अवधिम उक्त विषयोंपर अधिक प्रकाश पडने की संभावना होनेसे, तथा अभी न लिखने की कुछ विद्वमित्रोंकी सलाह होनेसे, इस मागमें वह प्रस्तावना हम जोड़ नहीं सके | इस ग्रंथ को हमने पांच खंडो में समाप्त करनेका विचार किया है। अंतिम पांचवे खंडने इस ग्रंथ के संबंध में उपर्युक्त सभी विवेचनोंसे परिपूर्ण गवेषणात्लक विस्तृत प्रस्तावना जोडने का संकल्प हमने किया है । पाठकों को हम आज इतना हो आश्वासन देते हैं । अग्रिम खंड शीघ्र प्रकाशित होते रहेंगे । इस अंथके परिपूर्ण दर्शनकी बढी आतुरता स्वाध्याय प्रेमियोंमें हैं । मद्द हमारे ध्यान में है । अतएव आगामी खंडों को बहुत ही मगतिसे प्रकाशन करने की व्यवस्था की गई है ।
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