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तत्त्वार्थचिंतामणिः
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क्योंकि प्रयोजन ( फल ) बतलानेवाले आदिके वाक्यरूप श्लोको प्रमाणसहितपनेका निश्चय है।
प्रवचनासुभानमूहिसाबकरता. लदे नान्यथा, अनादेयवचनत्वप्रसंगात् तथाविधाच्च, सतः श्रद्धानुसारिणां प्रेक्षावतां च प्रवृत्तिन विरुध्यते। _ अच्छे शास्त्रको बनाने वाले विद्वान् जिस आदिवाक्यका पहले प्रयोग करते है, वह वाक्य आगमप्रमाण और अनुमानप्रमाण दोनोंको मूल मानकर सिद्ध होना चाहिये, अन्यथा अमापनेका प्रसंग आवेगा। यहां भी आदि का फल बतानेवाला वाक्य आगम और अनुमानके आघारके विना नहीं है कारण कि प्रमाणोंको मूल न मानकर कहे हुए वाक्योंको कोई जीव प्रण नहीं करता है। जब कि आचार्य महाराजका पहला वाक्य आगमप्रमाणके अनुसार है तो उस प्रकारके उस वाक्यसे श्रद्धाके अनुसार चलनेवाले आज्ञाप्रधानियोंकी प्रवृत्ति होनेमें कोई विरोध नहीं है । और पहले वाक्य का प्रयोजन बतलाना रूप प्रमेय जन अनुमानकी भित्तिपर सिद्ध हो चुका है तो हिताहित विचारनेवाले परीक्षाप्रधानियोंकी शास्त्र सुनने. प्रवृत्ति भी बिना विरोध के हो जावेगी। कोई रोक नहीं है।
. श्रद्धानुसारिणोऽपि यागमादेव प्रवर्तयितुं शक्या, न यथा कथंचित् प्रवचनोपदिएतत्वे श्रद्धामनुसरतां श्रद्धानुसारित्वादन्यादृशामतिमूढमनस्कत्वात् तेषां तदनुरूपोपदेशयोग्यत्वात् सिद्धमातृकोपदेशयोग्यदारकवत् ।
शंकाकारने पूर्वमें कहा था कि शास्त्रोमें श्रद्धा, भक्ति, रखनेवाले भद्रप्रकृतिके मनुप्य तो विना फलके कहे हुए भी शास्त्र सुननेमें प्रवृत्ति कर लेंगे। इसके उत्तरमें यह विशेष समझना आवश्यक है कि श्रद्धाके अनुसार चलनेवाले भाज्ञाप्रधानी. श्रोताओंको भी सच्चे भागमसे निश्चित किये हुए पदार्थोंमें ही प्रवृत्ति करनी चाहिये । केवल भोलेपन से बाहें जिस किसी भी शास्त्राके वाक्यमें विश्वास करना ठीक नहीं है। क्योंकि सर्वज्ञ से कहे हुए शास्त्रों के द्वारा प्रतिपादित तत्वो ही श्रद्धा करनेवालोंको आज्ञाप्रधानी माना है । इनसे भिन्न-शास्त्र और भशास्त्र का विवेक न कर कोरी भोलेपनकी श्रद्धा करनेवालोंको मन में अत्यन्त मूर्खताके विचारोसे युक्त ही कहना पड़ता है। " गंगा गये गंगादास, यमुना गये यमुनादास" के सदृश विना विचारे कोरे भोंदूपमेकी श्रद्धा रखनेवाले उसी प्रकार तत्वार्थशास्त्रों के मुनने अधिकारी नहीं हैं । जैसे कि विपरीत मिश्यात्वके वशीभूत होकर हिंसाभे धर्म मानने वाले मीमांसक और जीव, पुण्य, पाप, मोक्षको नहीं मानने वाले चार्वाक या अत्यन्त विपरीतबुद्धिवाले चोर, व्यभिचारी आदि। अर्थात् विपरीत (उल्टी) समझ रखनेवाले और यों ही कोरी श्रद्धा रखने