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________________ सस्था चिन्तामणिः मध्याहार करना बृहस्पतिमतके अनुयायी चार्वाफको अयुक्त है । हां उनसे चैतन्य पैदा होता है इस उत्साविरूप मियाका उपस्कार करमा भाग लिदानो उमुचित है। अतः शरीर आदिक उस चैतन्यके कारक हेतु ही हैं। इस प्रकार चार्वाकोंका द्वितीय पक्ष ग्रहण करना भी युक्तियोंसे सिद्ध नहीं होता है, क्योंकि हम पूछते हैं कि आप चार्वाक उन शरीर आदिकको चैतन्यका सहकारी कारण मानते हैं या उपादान कारण मानते हैं ! बताओ दोनों पक्षमै किसी मी ढंगसे शरीर भाविकको कारकपना नहीं बनता है । इस बातको विशद रीतिसे दिखलाते हुए भगवान् विषानंदी आचार्य बार्तिक कहते हैं। नापि ते कारका वित्तेर्भवन्ति सहकारिणः । खोपादानविहीनायास्तस्यास्तेभ्योऽप्रसूतितः । ॥ ११३ ॥ द्वितीय पक्षके अनुसार चैतन्यके वे शरीर, इंद्रिय और विषय सहकारी कारण होकर कारक मी नहीं है क्योंकि विना अपने उपादानकारणके उस चैतन्यकी केवल उन शरीर आदि सहकारी कारणोंसे उत्पत्ति नहीं हो सकती है। उपादानकारणके विना जगत्मे कोई भी कार्य नहीं बनता है। खोपादानरहिताया वित्तेः शरीरादयः कारकाः शब्दादेस्ताखादिवदिति चेन्न असिद्धत्वात् तथाहि ___चार्याक कहता है कि शब्द, बिजली, दीपकलिका जैसे विना उपादानकारणके केवल कण्ठ, ताल, बादलोंका घर्षण, दीपशलाका आदि निमित्त कारणोंसे उत्पन्न हो जाते हैं, उसी प्रकार अपने उपादानकारणके विना उत्पन्न हुए. चैतन्यके भी शरीर आदि सहकारीकारक हो जानेगे । आचार्य कहते हैं कि चार्वाकका यह कहना तो ठीक नहीं है, क्योंकि पिना उपादानकारणके किसी मी पदार्थकी उत्पत्ति होना सिद्ध नहीं है । इस बातको प्रसिद्ध कर कहते हैं। नोपादानाद्विना शब्दविधुदादिः प्रवर्तते । कार्यत्वाकुम्भवयद्यदृष्टकल्पनमत्र ते ॥ ११४ ॥ क काष्टान्तर्गतादग्नेरग्न्यन्तरसमुद्भवः । तस्याविशेषतो येन तत्त्वसंख्या न हीयते ॥ ११५ ॥ - उपादानकारणके विना शब्द, बिजली आविक नहीं प्रवर्तते यानी उत्पन्न नहींहोते हैं (मतिज्ञा) क्योंकि वे कार्य हैं ( हेतु ) जैसे कि मिट्टीके बिना षडा उत्पन्न नहीं होता ( अन्वयदृष्टांत ) इस अनुमानसे शब्द आदिके चर्मचक्षुओंसे नहीं दीखनेवाले भी भाषावर्गणा और शब्दयोग्य पुद्गलस्कन्ध उपादानकारण सिद्ध कर दिये जाते हैं। यहां तुम पाकिका हमारे ऊपर यह फटाक्ष होसकता है
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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