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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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केवलप्रतिबन्धकस्यानागतस्य संचितस्य वात्यन्तिकायहेतु समग्रौ संवरनिर्जरे तपोड तिशयात् कस्यचिदवश्यं भवत्त एवेति प्रमाणसिद्धं तस्य समग्रक्षयहेतुत्वसाधनं यत:
केवलज्ञानका प्रतिबन्ध करनेवाले भविष्यके कर्म और पूर्व जन्मके एकत्रित कौका अत्यंतरूपसे क्षय करनेके कारण पूर्ण संवर तथा पूर्ण निर्जरा किसी न किसी विशुद्ध साधुके तपके माहात्म्यसे अवश्य उत्पन्न हो जाते ही हैं । इस प्रकार पूर्वोक्त शंकाकारको मोहनीय आदि समग्र कर्मों के पूर्णरूपसे क्षयके हेतुका विद्यमान रहनारूपी ज्ञापक साधन-प्रमाणोंसे सिद्ध कर दिया गया है, जिस कारणले कि काँके क्षय करनेवाला हेतु सिद्ध होगया ।
ततो निःशेषतत्वार्थवेदी प्रक्षीणकल्मषः । श्रेयोमार्गस्य नेतास्ति स संस्तुत्यस्तदार्थभिः ॥४९॥
इस कारणसे यह भी सिद्ध हो गया कि जिसके सम्पूर्ण पाप प्रकृष्टपनेसे ध्वस्त हो गये हैं वह पुरुष ही सम्पूर्ण पदार्थोके जाननेका स्वभाववाला है और वही मोक्षमार्गका प्राप्त करानेवाला पथप्रदर्शक नायक है। तथा वही उस मोक्षके अभिलाषी भन्यजीवों करके अच्छा स्तवन करने योग्य है । यहां तक दूसरी बार्तिकके संदर्भका उपसंहार हुआ !
ननु निःशेषतत्वार्थवेदित्वे प्रक्षीणकल्मषत्वे च चारित्राख्ये सम्यग्दर्शनाविनाभाविनि सिद्धेऽपि भगवतः शरीरित्वेनावस्थानासंभवान श्रेयोमार्गोपदेशित्वं, तथापि तदवस्थानेशरीरित्वाभावस्य रत्नत्रयनिबन्धनत्वविरोधाद तद्भावेऽप्यभावात्। कारणान्तरापेक्षायां न रत्न त्रयमेव संसारक्षयनिमित्तमिति कश्चित् ।
यहां किसी की शंका है कि स्याद्वादियोंके कथनानुसार जिनेन्द्र भगवान्के सम्यग्दर्शन गुणके साथ व्याप्ति रखनेवाले सम्पूर्ण पदार्थोंका जानलेनापन तथा चारित्रमोहनीय आदि चार धातिकमाका बढिया क्षय होजानारूप चारित्रनामके गुणके सिद्ध होजाने पर भी रत्नत्रयवाले भगवान् - का शरीरसहित होकर ठहरना सम्भव नहीं है, क्योंकि तीनों गुणों के पैदा होजानेपर वे शीघ्र ही न्यकर्म, भाककर्म और नोकर्भसे विमुक्त होकर सिद्धलोक को प्राप्त हो जायेंगे । अतः मोक्षमार्गका उपदेशदायकान नहीं बन सकेगा, फिर भी रत्नत्रय हो जानेपर आप उन जिनेन्द्र भगवान् का संसारमै उपदेश देनेके लिये स्थूलशरी-सहित स्थित रहना मानोगे तो आत्माके शरीरसहितपने के भभावरूप मोर्शी रस्तत्रयकी कारणताका विरोध होगा अर्थात् रत्नत्रयसे आत्माके स्थूल, सूक्ष्म शरीरोंका अभाव न हो सका, क्योंकि रत्नत्रयके उत्सन्न होनेपर भी उपदेशार्थ ठहरना पड़ा शरीरका अभाव नहीं हुआ है। यदि शरीरका उपाकि नाश करने के लिये रत्नत्रयके अतिरिक्त दूसरे कारणों