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________________ khm तत्त्वार्थी चन्तामणिः सर्वज्ञका ज्ञापक प्रमाण हम असर्वज्ञ लोगोंको किस प्रकार है यह दिखलाते हैं । यथाहमनुमानादेः सर्वज्ञं वेद्मि तत्त्वतः तथान्येऽपि नराः सन्तस्तद्वोद्धारो निरंकुशाः ॥ ३४ ॥ : जैसे कि मैं अनुमान, आगम, आदि प्रमाणोंसे सर्वज्ञको वास्तविकरूपसे जान लेता हूं उसी प्रकार दूसरे विचारशील सज्जन पुरुष भी बाधक प्रमाणोंसे रहित होकर उस सर्वज्ञको जान लेते हैं । *: सन्तः प्रशस्याः प्रेक्षावन्तः पुरुषास्ते मदन्येऽप्यनुमानादिना सर्वज्ञस्य बोद्धारः प्रेक्षाaara यथाहमिति ब्रुवतो न किंचिद्राधकमस्ति । न च प्रेक्षावच्वं ममासिद्धं निखयं सर्वविद्यावेदकप्रमाणवादित्वात् । यो हि यत्र निरवद्यं प्रमाणं वा स तत्र प्रेक्षावानिति सुप्रसिद्धम् । लोकें सगुणों से जो पूज्य हैं वे सज्जन हैं अर्थात् मुझसे अतिरिक्त जो विचारशील पुरुष हैं वे भी अनुमान आदि प्रमाणों के द्वारा सर्वज्ञ को जान रहे हैं ( प्रतिज्ञा ) क्योंकि वे पुरुष समीचीन तर्कणा से हिताहितको विचारनेवाले हैं, ( हेतु ) जैसे कि मैं विचारवाला होकर प्रमाणोंसे सर्वज्ञको आन रहा हूं | ( अन्वयद्दष्टान्त ) इस प्रकार कहते हुए मुझ सर्वज्ञवादीके अभिमत का कोई बाधक नहीं है | मुझको विचारशालिनी बुद्धिसे सहितपना असिद्ध नहीं हैं। क्योंकि मैं निर्दोषरूपसे संपूर्ण विद्याओंके ज्ञान करानेवाले प्रमाणों को स्वीकार करनेवाला वादी हूं। जो वादी जिस विषयमें निर्दोषरूपसे निश्चय करके प्रमाणोंको कह रहा है वह वादी उस विषयमें अवश्य विचारशील सत्पुरुष माना जाता है जैसे कि सच्चा वैद्य, यह व्याप्ति लोकमें अच्छी तरहसे प्रसिद्ध है । यथा मम न तज्ज्ञप्तेरुपलम्भोऽस्ति जातुचित् । तथा सर्वनृणामित्यज्ञानस्यैव विचेष्टितम् ॥ ३५ ॥ हेतोर्न रत्व कायादिमत्त्वादेर्व्यभिचारतः । स्याद्वादिनैव विश्वज्ञमनुमानेन जानता ॥ ३६ ॥ यहां मीमांसक कहता है कि जैसे मुझको उस सर्वज्ञ की ज्ञप्तिका उपलम्भ कभी नहीं होता । उसी प्रकार सम्पूर्ण मनुष्यों को भी सर्वज्ञका ज्ञान नहीं हो सकता है। इस प्रकार मीमांसकोंका कहना अज्ञानपूर्वक ही किया करना है कारण यह है कि आप सम्पूर्ण मनुष्योंको सर्वज्ञका ज्ञान नहीं है। इसका यही अनुमान करेंगे कि " सम्पूर्ण मनुष्यों में कोई भी मनुष्य सर्वज्ञको नहीं जानते १८
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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