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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
यदि ज्ञाता मीमांसकको सम्पूर्ण पुरुषों में सम्बन्धित होरहे सर्वज्ञके ज्ञापकममाणोंका अनुपलम्भ अपने आप सिद्ध होता और बादमें किसी एक आध सर्वज्ञवादी व्यक्तिको किसी कारण से उसके विपरीत सर्वज्ञके ज्ञापकका उपलम्भरूप आरोप ( कल्पना ) हो जाता, पुनः इस आरोपको आप निवारण करते तब तो हमारे प्रकान्ताभावका और आपके सर्वज्ञाभावका न्याय समान होता किन्तु इस प्रकार सर्वज्ञाभाववादियोंके मतमे सम्पूर्ण आत्माओंमें सर्पज्ञके उन झापक प्रमाणोंका नहीं दीखना सिद्ध नहीं है । और हमारे यहां अनेकान्तोंका दर्शनरूप एकान्तोंके ज्ञापकका अजुपलम्भ सिद्ध है। अतः हमारा ओर आपका न्याय सहश नहीं है।
आसन् सन्ति भविष्यन्ति बोद्धारो विश्वदृश्वनः । मदन्येऽपीति निर्णीतिर्यथा सर्वज्ञवादिनः ॥ ३२ ॥ किंचिज्ज्ञस्यापि तद्वन्मे तेनैवेति विनिश्चयः । इत्ययुक्तमशेषज्ञसाधनोपायसंभवात् ॥ ३३ ॥
सम्पूर्ण पदार्थों के प्रत्यक्ष कर चुकनेवाले सर्वज्ञको जाननेवाले मेरेसे अतिरिक्त दूसरे पुरुष पहिले यहां हो चुके हैं उस समय मी अन्य क्षेत्रों में प्रत्यक्ष करनेवाले और यहां आगम, अनुमानसे जाननेवाले सर्वज्ञवेत्ता पुरुष वर्तमान हैं तथा भविष्यकालमें भी सर्वज्ञको जाननेवाले अनेक होयेंगे इस प्रकारका निर्णय जैसे सर्वज्ञवादीको है, उसीक समान मुझ मीमांसकको भी अच्छी तरह इस पातका विशेषरूपेस निश्चय है कि पहिले कालोंमें भी सम्पूर्ण लोग अल्पज्ञ थे और इस समय भी अल्पज्ञ हैं तथा अब आगे भी सम्पूर्ण जन अश्पज्ञ रहेंगे सर्वज्ञ और सर्वज्ञको जाननेवाला न कोई था, न है न होगा । सम्पूर्ण मनुष्य अल्मझोंको ही जाननेवाले थे, है, और होंगे भी। आचार्य कहते है कि इस प्रकार मीमांसकका कहना युक्तियोंसे रहित है। क्योंकि सर्वज्ञके सिद्ध करनेका समीचीन उपाय विद्यमान है । प्रमाणसे सम्भव रही वस्तुका असम्भव कहते रहना उचित नहीं है।
स्वयमसर्वज्ञस्यापि सर्वविदोबोद्धारो वृत्ता वर्तन्ते मत्तोऽन्येऽपीति युक्तं वका, तत्सिध्युपायघटनात्। न पुनरसर्वज्ञवादिनस्ते पूर्व नासन्न सन्ति न भविष्यन्तीति प्रमाणामावात् ।
इस समय स्वयं अल्पज्ञ होकर भी हम जैन इस घातको युक्तिसहित कह सकते हैं कि हमसे अतिरिक्त पुरुष भी भूतकालमें सर्वज्ञके जाननेवाले थे, हैं, और वर्तमान में भविष्यों होंगे। क्योंकि उस सर्वज्ञकी सिद्धिका उपाय अनुमानप्रमाण चेष्टासहित बना हुआ है। किंतु सर्वज्ञको न माननेवाले मीमांसकोंके यहां सर्वह न थे, न हैं, और न होंगे इस घातका कोई प्रमाण नहीं है।
कपम् ।।