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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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हमारा पूर्वोक्त अनुमान तो ठीक है ही और यह भी अनुमान युक्तियुक्त है कि "सूक्ष्म होरहे परमाणु, आकाश, और देश कालसे व्ययहित माने गये स्वर्ग, सुमेरु, रामचन्द्र, आदि भी संपूर्ण पदार्थ ( यह पक्ष है) किसी न किसी आत्माके पूर्ण स्पष्टरूपसे होनेवाले प्रत्यक्षज्ञानके विषय है ( यह साध्य है ) क्योंकि वे पदार्थ श्रुतज्ञानसे जानने योग्य है । ( यह हेतु है ) जो जो पदार्थ हम लोगोंको शास्त्रोंसे या इतिहाससे जानने योग्य होते हैं वे किसी न किसी तद्देशीय या तत्कालीन पुरुषों के द्वारा अवश्य ही प्रत्यक्षरूपसे जाने जाते हैं । जैसे कि गंगा, सिधु, आदि नदियां, जम्बूद्वीप या लंका, अमेरिका, एशिया, आदि उपद्वीप, हिमवान, नील अथवा हिमालय, विन्ध्याचल, आदि पर्वत तथा भारतवर्ष, यूरोप, पंजाब, बंगाल, मालव, आदि देश, ये संपूर्ण पदार्थ किसी न किसीके प्रत्यक्ष हैं " ( यह अन्वय दृष्टान्त है )
धर्माधर्माचेच सोपायहेयोपादेयतत्वमेव वा कस्यचिदध्यक्ष साधनीयं न तु सकलोऽर्थ इति न साधीयः, सकलार्थप्रत्यक्षत्वासाधने तध्यक्षासिद्धः।
यहां मीमांसक कहते हैं कि "आप जैन उक्त अनुमानमें संपूर्ण पदार्थोको पक्ष करके किसी न किसीके प्रत्यक्षमे विषय होना सिद्ध मति करो, आपको केवल पुण्य, पापको ही अथवा उपायसहित छोडने योग्य और ग्रहण करने योग्य तत्त्वों यानी उनके कारणों और उनको ही पक्ष करके किसी न किसी के प्रत्यक्षसे जाना गयापन सिद्ध करमा चाहिये । ग्रंथकार कहते हैं कि यह मीमांसकोंका कहना कुछ अच्छा नहीं है। क्योंकि सकल पदार्थोंका प्रत्यक्षसे जाने गयेपनको सिद्ध न करनेपर कुछ थोडेसे विवक्षित उन पुण्य, पाप, और हेय, उपादेय, अतीन्द्रिय तत्त्वोंका भी प्रत्यक्ष करलेना बन नहीं सकता है, अर्थात् जो पुग्यपायको प्रत्यक्षसे जान लेगा, वह संपूर्ण पदार्थोका जाननेवाला अवश्य है क्योंकि सब पदार्थोके जानने पर ही अत्यन्त सूक्ष्म पुण्य, पाप, आकाश, आदि पदाथोंका प्रत्यक्ष हो सका है।
संवत्या सकलार्थः प्रत्यक्षः साध्य इत्युन्मत्तभाषितं स्फुट तस्य तथाभावासिद्धौ कस्यचित्प्रमाणतानुपपचे।
यदि यहां कोई यों कई कि " केवल करिपतव्यबहारमें प्रशंसा करनेके लिये ही सर्वज्ञके सम्पूर्ण पदार्थों का प्रत्यक्ष करनापन साध्य किया जाता है । वस्तुतः सर्व पदार्थों को प्रत्यक्ष करनेवाला ही कोई नहीं है । यह कहना तो पागडोंकी बकवाद है। क्योंकि सम्पूर्ण पदाका केवलज्ञानद्वारा विशवरूपसे उस प्रकार प्रत्यक्ष होना यदि सिद्ध न करोगे तो सूक्ष्मपरिणमनोंसे सहित किसी भी पदार्थके जानने प्रमाणता नहीं आसकती है । यः सर्वज्ञः स सर्वचित् इत्यादि श्रुतियोंका मीमांसक लोग ज्योतिष्टोन आदि. यज्ञों की प्रशंसा ( तारीफ) करना ही अर्थ करते हैं कि हे ज्योतिष्टोम |