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________________ प्रथम अधिकार दोनों रूप होते हैं। जब सम्यग्दृष्टि जीवके होते हैं तब सम्यग्ज्ञान कहलाते हैं और उस दशा में प्रमाण माने जाते हैं परन्तु जब मिथ्यादृष्टि जीवके होते हैं तब मिध्याज्ञान माने जाते हैं और उस दशामें अप्रमाण माने जाते हैं । यद्यपि ज्ञान न मिथ्या होता है और न सम्यग, तो भी पात्रकी विशेषतासे उसमें मिथ्या और सम्यगका व्यवहार होता है । जिस प्रकार पात्रको विशेषतास दूध कडुआ कहा जाता है उसी प्रकार मिथ्यादष्टि पात्रकी विशेषतासे ज्ञान मिथ्याशान कहा जाता है । यद्यपि मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि जीवोंको पदार्थका प्रतिभास सामान्यरूपसे एक समान होता है तो भी मिथ्याष्टिका ज्ञान मिथ्याज्ञान हो रहता है क्योंकि उसे सल और असत् पदार्थमें कोई विशेषता नहीं रहती, वह अपनी इच्छासे दोनों पदार्थों को समानरूपसे ग्रहण करता है। जैसे पागल मनुष्य कभी स्त्रीको स्त्री और माताको माता जानता है परन्तु उसके वैसे जानने में कि नहीं रहा, इसलिये पाना ...! .म्यग्ज्ञान नहीं कहा जाता। मनःपर्य यज्ञान छठवं गुणस्थानसे लेकर बारहवं गुणस्थान सकके मुनियोंके ही होता है और केवलज्ञान अरहन्त, सिद्ध अवस्था में ही होता है इसलिये ये दोनों सदा सम्यग् ही होते हैं उनमें मिथ्यापना नहीं रहता ।। ३५-३६ ।। नयका लक्षण और उसके भेद वस्तुनोऽनन्तधर्मस्य प्रमाणव्यजितात्मनः । एकदेशस्थ नेता यः स नयोऽनेकधा मतः ||३७।। अर्थ-प्रमाणके द्वारा जिसका स्वरूप प्रकट है ऐसी अनन्तधर्मात्मक वस्तुके एक देशको जो जानता है वह नय है। नय अनेक प्रकारका माना गया है। भावार्थ---संसारका प्रत्येक पदार्थ नित्य-अनित्य, एक-अनेक, भेद-अभेद आदि परस्पर विरोधी अनेक धर्मोका भण्डार है ऐसा प्रमाणज्ञानके द्वारा अनुभव में आता है। उन अनन्त धर्मो से जो किसी एकधर्मको जानता है बह नय काहलाता है । इस नयके अनेक भेद हैं ॥ ३७ ।। द्रध्यार्थिक और पर्यायाथिक नयका स्वरूप द्रव्यपर्यायरूपस्य सकलस्यापि वस्तुनः । नयावंशेन नेतारौ द्वौ द्रव्यपर्यायार्थिको ||३८॥ अनुप्रवृत्तिः सामान्यं द्रव्यं चैकार्थवाचकाः । नयस्तद्विषयो यः स्याज्ञयो द्रव्यार्थिको हि सः ॥३९॥ व्यावृत्तिश्च विशेषश्च पर्यायश्चकवाचकाः । पर्यायविषयो यस्तु स पर्यायार्थिको मतः ॥४०॥
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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