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________________ तत्वार्थसार २ पर्यापसमास-पर्यायज्ञानके ऊपर तथा अक्षरज्ञानके पूर्व सक असंख्यात लोकप्रमाण षट्स्थानोंको वृद्धिको लिये हुए जो श्रुतज्ञान होता है उसे पर्यायसमास कहते हैं। __३ अक्षर-उत्कृष्ट पर्यायसमाराझानसे अनन्तगुणा अक्षर नामका श्रुतज्ञान 'होसा है। ४ अक्षरसमास-अक्षरज्ञानके ऊपर और पदज्ञानके पहलेके ज्ञानको अक्षरसमास श्रुतज्ञान कहते हैं। ५ पर- अक्षरज्ञानके ऊपर क्रमस एक-एक अक्षरकी वृद्धि होते-होते जब संख्यात अक्षरोंकी वृद्धि हो जाती है तब पदनामका श्रुतज्ञान होता है। सोलह सो चौंतीस करोड़ तिरासी लाख सात हजार आठ सौ अठासी अक्षरोंका एक मध्यमपद होता है। ६ पदसमास- एकपदके ऊपर और संघातनामक श्रुतज्ञानके पूर्व जो ज्ञान होता है उसे पदसमास कहते हैं। ७ संघात-एकपदके आगे क्रमसे एक-एक अक्षरकी वृद्धि होते-होते जब संख्यात हजार पदकी वृद्धि हो जावे तब संघात नामका श्रुतज्ञान होता है ! संघात नामक श्रुत्तज्ञानका इतना विस्तार हो जाता है कि उससे चारगतियोंमसे एकगतिका वर्णन होने लगता है । ८ संघातसमास-संघात्तशानके ऊपर और प्रतिपत्तिकज्ञानके पहले जो ज्ञानके विकल्प हैं वे संघातसमास कहलाते हैं। १ प्रतिपत्तिक-संघात श्रुतज्ञानके ऊपर क्रमसे एक-एक अक्षरको वृद्धि होते-होते जब संख्यात हजार संघातोंकी वृद्धि हो जावे तन्त्र प्रतिपत्तिक नामका श्रुतज्ञान होता है । इससे नरकादि चारों गतियोंका विस्तृत स्वरूप जाना जाता है। १० प्रतिपत्तिकसमास-प्रतिपत्तिकज्ञानके ऊपर तथा अनुयोगज्ञानके पहले जो ज्ञानके विकल्प हैं उन्हें प्रतिपत्तिकसमास श्रुतज्ञान कहते हैं । ११ अनुयोग-प्रतिपत्तिकज्ञानके ऊपर क्रमसे एक-एक अक्षरकी वृद्धि होतेहोते जब संख्यात हजार प्रतिपत्तिको वृद्धि हो जाये तब अनुयोग नामका श्रुतज्ञान होता है । इस ज्ञानके द्वारा चौदह मार्गणाओंका विस्तृत स्वल्प जाना जाता है। १२ अनुयोगसमास-अनुयोगज्ञानके ऊपर प्राभृतप्राभृतज्ञानके पूर्व तक ज्ञानके जितने विकल्प हैं उन्हें अनुयोगसमास कहते हैं। १३ प्राभूतप्राभूल-अनुयोगज्ञानके ऊपर क्रमसे एक-एक अक्षरको वृद्धि होतेहोते जब चतुरादि अनुयोगोंको वृद्धि हो जाये तब प्राभृतप्राभृत नामका श्रुतज्ञान होता है। वस्तु नामक श्रुतज्ञानके एक अधिकारको प्राभृत और प्राभृतके अधिकारको प्राभृतप्राभृत कहते हैं ।
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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