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प्रथम अधिकार १४ प्राभूतप्राभूतसमास-प्राभृतप्राभृतज्ञानके ऊपर और प्राभृतज्ञानके पहले जानके जितने विकल्प हैं वे प्राभृतप्राभृतसमास कहलाते हैं।
१५ प्राभूत-प्राभूतप्राभृतज्ञानके कपर क्रमसे एक-एक अक्षरको वृद्धि होतेहोते जब चौबीस प्राभूतप्राभृतकी वृद्धि हो जावे तब प्राभृत नामका श्रुतज्ञान होता है।
१६ प्राभूतसमास-प्राभूतज्ञानसे ऊपर और बस्तुज्ञानके पहले ज्ञानके जितने विकल्प हैं वे प्राभृतसमास कहलाते हैं।
१७ वस्तु-प्राभृतज्ञानके ऊपर क्रमसे एक-एक अक्षरकी वृद्धि होते-होते जब बीस प्राभृतकी वृद्धि हो जावे तब वस्तु नामका श्रुतज्ञान होता है । एक-एक वस्तु अधिकारमें बीस-बीस प्राभृत होते हैं और एक-एक प्राभूतमें चौबीस-चौबीस प्राभृतप्राभूत होते हैं।
१८ वस्तुसमास-वस्तुज्ञानके ऊपर और पूर्वज्ञानके पहले जो ज्ञानके विकल्प हैं उन्हें वस्तुसमास श्रुतज्ञान कहते हैं ।
१९ पूर्व-वस्तुज्ञानके ऊपर एक-एक अक्षरकी वृद्धि होते-होते जब पदसंघात आदिकी वृद्धि हो चुकती है तब पूर्व नामका धुतज्ञान होता है । इसके उत्पाद, आग्नाचणीय, वीर्यप्रवाद, अस्तिनास्तिप्रवाद, ज्ञानप्रवाद, सत्यप्रवाद, आत्मप्रवाद, कर्मप्रवाद, प्रत्याख्यान, वीर्यानुवाद, कल्याणवाद, प्राणवाद, क्रियाविशाल और लोकबिन्दुसार ये चौदह भेद हैं। इनके कमसे दश, चौदह, आठ, अठारह, बारह, बारह, सोलह, बोस, तीस, पन्द्रह, दश, दश, दश, दश, वस्तु नामक अधिकार हैं।
२० पूर्वसमास-पूर्वज्ञानके ऊपर और उत्कृष्ट श्रुतज्ञानके पहले ज्ञानके जितने विकल्प हैं वे पूर्वसमास नामक धुतज्ञान कहलाते हैं।
इन बीस भेदोंके सिवाय श्रुतज्ञानके अङ्गबाह्य और अङ्गप्रविष्टको अपेक्षा दो भेद और होते हैं। जिनमें अङ्गबाह्यके अनेक भेद हैं और अङ्गप्रविष्टके १ आचाराङ्ग, २ सूत्रकृताङ्ग, ३ स्थानाङ्ग, ४ समवायाङ्ग, ५ व्याख्याप्रज्ञप्ति, ६ धर्मकथान, ७ उपासकाध्ययनाङ्ग, ८ अन्तःकृद्दशाङ्ग, ९ अनुत्तरौपपादिकदशाङ्ग, १० प्रश्नव्याकरणाङ्ग, ११ विपाकसूत्राङ्ग और १२ दृष्टिवादाङ्ग ये बारह भेद हैं। __ अङ्गवाह्यके, १ सामायिक, २ चतुर्विशस्तव, ३ वन्दना, ४ प्रतिक्रमण, ५ वैनयिक, ६ कुतिकर्म, ७ दर्शवैकालिक, ८ उत्तराध्ययन, ९ कलपव्यवहार, १० कल्पाकल्य, ११ महाकल्प, १२ पुण्डरीक, १३ महापुण्डरोक, और १४ निषिद्धिका ये चौदह भेद है।