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________________ १६ १७९ १७९ १८ १८० १८० १९ १८० २०१८. २१-२२ १८० २२ १८० विषयानुक्रमणिका विविक्तशग्यासनतपका लक्षण अभ्यन्तर तपके छह भेद स्वाध्यायतपके भेद वाचनास्वाध्यायका लक्षण प्रच्छनास्वाध्यायका लक्षण आम्नायस्वाध्यता लक्षण धर्मोपदेशस्वाध्यायका लक्षण अनुप्रेक्षास्वाध्यायका लक्षण प्रायश्चित्ततपके नौ भेद आलोचनाका लक्षण प्रतिक्रमण और तदुभयका लक्षण तप और व्युत्सर्गका लक्षण विवेक और उपस्थापनाका लक्षण परिहार और छेदका लक्षण वैयाबुत्त्यतपका लक्षण व्युत्सगतपके दो भेद बिनयतपके चार भेद दर्शनविनयका लदाण ज्ञानविनयका लक्षण चारित्रविनयका लक्षण उपचारविनयका लक्षण ध्यानके चार भेद आर्तध्यानका लक्षण और भेद रौद्रध्यानका लक्षण और भेद ध्यानका लक्षण धर्म्यध्यानका लक्षण आज्ञाषिचम घHध्यानका लक्षण अपायविचय घHध्यानका लक्षण विपाकविचय धर्माध्यामका लक्षण संस्थानविचय घयं ध्यानका लमण शुक्लध्यानके चार भेद पृथक्त्यशुक्लध्यानका लक्षण पृथक्त्रशुक्लध्यानकी विशेषता एकत्व शुक्लण्यानका लक्षण २४ १८१ २५ १८१ १८१ २७-२८ १८१ १८२ १८२ १८३ www.० १८३ १८३ १८३ १८३ १८४ ३६ १८४ १८४ १८५ १८५ ४२१८५ १८६ १८६ ४६-४७ ४८ १८७
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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