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________________ तत्वार्थसार १७० १७० १७१ १७१ १७२ १७२ १७२ १७२ १७३ १७३ १७४ अशरणभावना संसारभावमा एकत्वभावना दायत्वभावना अशुचित्वभावना आस्रवभावना संघरभावना निर्जराभावना लोकभावना बोघिदुर्लभभावना धर्मस्वाख्यातत्त्वभावना अनुप्रेक्षासे संवरकी सिद्धि पोच प्रकारका चारित्र सामायिकचारित्रका लक्षण छेदोपस्थापनाचारित्रका लक्षण परिहारविशुद्धिसंयमका लक्षण सूक्ष्मसापरायसंयमका लक्षण यथाख्यातमारित्रका लक्षण सम्यकचारित्रसे संवर होता है तप भी संवरका कारण है संबरतत्तका उपसंहार सप्तम-अधिकार मङ्गलाचरण और प्रतिज्ञावाक्य निर्जराका लक्षण और भेद विपाकजा निर्जराका लक्षण अबिपाकजा निर्जराका लक्षण और दृष्टान्त विपाकजा और अविनाकजा निर्जराके स्वामो तपके भेद वायतपके छह भेद अवमौवर्षतपका लक्षण उपवासतपका लक्षण रसपरित्यागतषका लमण वृत्तिपरिसंख्यामतपका लक्षण कायक्लेशतपका लक्षण १७४ १७५ १७६ १७६ १७७ ७ १७७ १७७ १७८ १७८ १७९
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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