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________________ १५८ १५८ १५९ १६१ A १६१ १३२ -.. विषयानुक्रमणिका कर्मोमें पुण्य और पापकर्मका भेद पुण्यकर्म कौन-कौन है? पापप्रकृतियां कौन-कौन हैं? बन्धतत्वका उपसंहार षष्ठ-अधिकार मङ्गलाचरण और प्रतिज्ञाशाक्य संवरका लक्षण संबरफे हेतु गुप्तिका लक्षण गुप्तिसे शीघ्र ही संबर होता है समितियों के नाम ईसिमितिका लक्षण भाषासमितिका लक्षण एषणासमिसिका लक्षण आदाननिक्षेपणसमितिका लक्षण उत्सर्गसमितिका लक्षण समितिका फल दश धोके नाम धमाधर्मका लक्षण मार्दधर्मका लक्षण आर्जवधर्मका लक्षण शीवधर्मका लक्षण सत्यधर्मका लक्षण संयमधर्मका लक्षण सपोधर्मका अभण स्यागधर्मका लक्षण माक्रिजन्यधर्मका लक्षण ब्रह्मचर्यधर्मका लक्षण धर्मसे संवरकी सिद्धि बाईस परीपहोंके नाम परीषहजय संघरका कारण है तप, संवर और निर्जरा दोनोंका कारण है बारह अनुप्रेक्षाओंके नाम अनित्यभावना ::::. १६३ १६३ १६३ १६४ -.. ASIA १६-१७ १६५ १६५ :: २२ २३-२५ १६६ २७-२८ २९-३०
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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