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________________ १८७ ४२-५० ५१.५२ १८७ ५५-५७ १८८ १८९ १९२ १९२ १९२ ११२ १९३ तत्त्वार्थसार एकस्वशुक्लध्यानको विशेषता सूक्ष्मक्रियशुक्लध्यानका लक्षण व्युपरतक्रिय शुक्लध्यानका लक्षण गुणशेणीनिर्जराके दशा स्थान पांच प्रकारके निम्रन्थ मुनि पांगारके निजी समानिक निर्जरातत्त्वका उपसंहार अष्टम-अधिकार मङ्गलाचरण और प्रतिज्ञावाक्य मोक्षका लमाण मोक्ष किस प्रकार होता है ? मोक्षमें किन-किन गुणों का अभाव तथा सद्भाव रहता है कर्मबन्धका अन्त होता है पुनः कर्मबन्धको आशङ्का नहीं है जानना देखना बन्धका कारण नहीं है कारणके विना बन्ध संभव नहीं है स्थानसे युक्त होनेके कारण मुक्सजीवका पतन नहीं होता गौरवका अभाव होनेसे भी जोवका पतन नहीं होता सिद्धोंमें परस्पर उपरोध-रुकावट नहीं है आकारका अभाव होने से मुक्त जीवों का अभाव नहीं होता शरीरफा अभाव होने से आत्मा सर्वत्र फैलता नहीं है दृष्टान्त द्वारा इसोका समर्थन मुक्तजीब ऊटुंगगन करते है कर्मक्षयका क्रम मुक्तजीवोंके ऊर्ध्वगमन स्वभावका दृष्टान्तों द्वारा समर्थन कर्मक्षय और कार्यगमन साथ ही साथ होता है सिद्ध भगवानक किस कर्मके अभावमें कौन गुण प्रकट होता है सिद्धोंमें विशेषताके कारण क्या हैं ? सिखोंकी अन्य विशेषता सिद्धोंके सुखका वर्णन शरीररहित सिद्धोंके सुख किस प्रकार होता है? मुक्तजीबोंका सुख सुषुप्त अवस्थाके समान नहीं है मुक्त जीवोंका सुख निरुपम है। अर्हन्त भगवानको आज्ञासे मुक्तजीवोंका सुख माना जाता है। मोक्षतत्त्वका उपसंहार १९४ १९४ १७-१८ १९६ २०-२६ १९७ २७-३४ १९८ ३७-४० २०० ४१-४२ २०० ४३-४४ २०४ ४५ २०५ ४६-४९ २०५ ५०-५१ २०६ ५२-५३ २०७ २०७ ५५
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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