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________________ २-४ ११० ११० १११ १११ vo ११३ ११३ १० -१२ १३-१६ ११५ २०-२४ २५-२६ २७-२८ ११६ ११७ ११७ ११८ ११८ ११९ तत्त्वार्थसार चतुर्थ अधिकार मङ्गलाचरण और प्रतिज्ञा आमवका लक्षण बालवके सोपरायिक और ईपिथ भेद साम्परायिक आस्रवका कारण मानवमें होनेवाली विशेषताके कारण अधिकरण के भेद ज्ञानावरणके आसबके हेतु दर्शनावरणकर्मके आम्रवके हेतु असातावदनीयकर्म के आस्रवके हेतु साचावेदनीयके आरवके हेतु दर्शनमोहनीयके आस्रवके हेतु चारित्रमोहनीयकर्मक आस्रावफे हेतु नरकायुके आस्रवके हेतु तिर्यश्च आयुके आसपके कारण मनुष्यायुके आनषके कारण देवायुके आस्रवके हेतु अशुभ नामकर्मके आसबके हेतु शुभ नामकर्मके आस्रवके हेतु तीर्थकरनामकर्मके आरवके हेतु मीच गोत्रकर्मने मानवके हेतु उच्च गोत्रकर्मके आस्रवके हेतु अन्तरायक्रमके आसबके हेतु प्रत और अव्रतके निरूपणकी प्रतिज्ञा व्रतका लक्षण महाव्रत और गणुव्रतका लक्षण प्रतोंकी पांच-पांच भावनाओंके कहने की प्रतिज्ञा अहिंसावतकी पांच भावनाएं सस्थतकी पांच भावनाएं अचौर्यवतकी पांच भावनाएं अन्यचर्यव्रतकी पांच भावनाएं अपरिग्रह्मतको पांच भावनाएं हिंसादि पापोंके विषयमें सा विचार करना चाहिए? ३०-३४ ३५-३९ ४०-४१ ४२-४३ ४४-४७ १२० १२० ४९-५२ १२१ १२२ ५५-५८ १२३ १२३ १२३ १२४ १२४ १२४ १२५ ३ ૬૪ १२६ ६८ १२६ १२७
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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