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________________ विषयानुक्रमणिका धर्म-अधर्म आदि द्रव्य स्वयं निष्क्रिय होकर भी क्रिया में हेतु हैं कालद्रव्यका लक्षण वर्तमाका लक्षण कालद्रव्यकी हेतुकर्तृताका वर्णन कालद्रभ्यको हेतुकर्तृताका समर्थन काला किस प्रकार कहाँ स्थित है ? व्यवहारकालके परिचायक ज परिणामका लक्षण क्रियाका लक्षण परत्व और अपरत्वका लक्षण यवहारकालका विभाग मनुष्यक्षेत्र में होता है कालके भेद दृष्टान्त के द्वारा कालके तीन भेदोंका समर्थन पुद् गलका लक्षण पुगलोंके भेद स्कन्ध, देश और प्रदेखके लक्षण स्कन्ध और अणुकी उत्पत्ति के कारण परमाणुका लक्षण परमाणु की अन्य विशेषता पुद्गलको पर्यायोंका वर्णन शब्द भेद संस्थानके भेद सूक्ष्मत्व के भेद होय के भेद बचके भेद तमका लक्षण छायाका लक्षण आतप और उद्योतका लक्षण भेदके भेद किन परमाणुओं का परस्परमें बन्ध होता है ? पुद्गलकी बन्धपर्यायें अनन्त हैं अजीत के श्रद्धानादिका फल ३९ ** ४१ ४२ ४३ ४४ = 5 ४६ ४७ ४८ ४९ ५० ५१-५४ ५५ ५६ ५७ ५८ ५९ ६०-६१ ६२ ६३ ६४ ६५ ६६ ६७ ६८ ६९-७० 9 ७२ ७३-७५ 9 - ट्र ९८ ९८ ९८ ९८ ९९ ९९ १०० ܐ १०१ १०१ १०२ १०३ tax १०४ •x १०५ १०५ १०५ १०६ १०६ १०६ १०६ १०६ १०६ १०७ १०७ १०७ {av १०८ १०९ १०९
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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