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________________ विषयानुक्रमणिका ७२ १२७ १२७ ७३ ७४ १२८ १२८ ७५ ७६ १२८ १२८ ७७ ७८ १२८ ७९ १३१ १३१ १३२ १३२ मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ्यभावना संसार और शरीरके स्वभावका विचार हिंसापापका लक्षण असत्यपापका लाण चोरीपापका लक्षण मैथुनपापका लक्षण परिग्रहपापका लक्षण प्रतीका लक्षण प्रतीके भेद बारह व्रतोंके नाम सल्लेखनायतका वर्णन अतिचारोंके वर्णनको प्रतिज्ञा सम्यक्त्वके पांच अतिचार अहिंसाणुव्रतके पांच अतिचार सत्याणुवतके पांच अतिचार मचौर्याणुशतके पांव अतिचार ब्रह्मचर्याणुव के पांच अतिचार परिग्रहपरिमाणाणुयतके पांच अतिचार भिवतके पनि अतिचार देशव्रतके पांच अतिचार अनर्थदण्डनतके पांच अतिचार सामायिकशिक्षाव्रतके पांच अतिचार प्रोषधोपबास शिक्षाव्रतके पांच अतिचार भोगोपभोगपरिमाणप्रतके पांच अतिचार अतिथिसंविभागमतके पाँच अतिचार सल्लेखनावतके पांच अतिचार दानका लक्षण दानमें विशेषताके कारण पुण्यानवका कारण पापानवका कारण पुण्य-पापकी विशेषता पुण्य और पापकी समानता मानवतत्वको जाननेका फल ८८-८९ ९० १३५ १३५ १३७ १३७ १०० १०२ १०३ १३७ १३८ १३८ १३८
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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