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________________ शब्दानुक्रमणी २२९ पर्याप्त १०३ ३८ ८५ १४९ प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन ४४ प्रदेश ९२ प्रदेशबन्ध ९ प्रदेशाबन्न १० प्रदोष १७ प्रमत्तसंयतगुणस्थान प्रमाण २६-२७ प्रमाद प्रयोगक्रिया प्रश्नध्याकरणा १६६ प्राणवाद प्राणातिपातिकी क्रिया प्रात्यागिकी क्रिया प्राभृतनाभृतश्रुतशान प्राभृलप्राभूतसमासश्रुतज्ञान प्राभृतश्रुतज्ञान प्राभृतसमासश्रुतज्ञान प्रादोषिकोक्रिया प्रारम्भक्रिया १४७ प्रोपषोपवास १४७ ११ र पर्याप्तक पर्याय पर्यायश्चतज्ञान पर्यायसमासश्रुतज्ञान पर्यायाधिकनय पारिवाहिकी क्रिया पारिणामिकमाव पारितापिकी क्रिया पार्षद पिपासा (तुषा) परिषह पीतलेश्या पुण्डरीक पुद्गल पूर्वश्रुसशान पूर्वसमास तज्ञान पृथक्त्वक्लध्यान प्रकीर्णक प्रकृतिबन्ध प्रश्चला प्रचलनचला प्रच्छनास्वाध्यायतप प्रशापरिषह प्रतर प्रतिक्रमण प्रतिक्रमणतदुभय प्रतिपत्तिकश्रुतज्ञान प्रतिपत्तिकसमासश्रुतज्ञान प्रत्यक्षप्रमाण प्रत्यभिज्ञान प्रत्याख्यानपूर्व प्रत्याख्यानाबरण प्रत्येक ८ १३० बन्ध १८. बन्ध १४२ १०७ बहु १८१ बहुविध बामनिव॒ति वाजपकरण ४८ ६ बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा ब्रह्मचर्यधर्म ११ भक्तपान संयोग १४८ भयसंज्ञा १४९ भवप्रत्ययअवधिज्ञान १२
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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