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________________ सत्यार्थसार ३३ मोहनीय-मोह ८३ १७४ १७८ १८४ ४८ ४४ भव्यत्व भब्यत्वमार्गणा भाब भावनिक्षेप भावेन्द्रिय भाषापर्याप्ति भाषासमिति भोगोपभोगपरिमाण मति मनःपर्ययज्ञाच मनःपर्याप्ति मनोनिसर्ग मलधारणपरिपह महाकल्प महापुण्डरीक महावत मात्सर्य मायाक्रिया मार्दव मिथ्यात्व मिथ्यात्वक्रिया मिथ्यात्वप्रकृति मिथ्यादर्शनक्रिया मिथ्यादृकगुणस्थान मिश्रगुणस्थान मुक्तजीव मूलगुणनिर्वर्तना मृषावचनयोग ३१ २४-२५ यथाख्यातवारिण यशाकीति ४८ याचनापरिषह ४४ योग १६२ रस १२९ रसपरित्यागतप ७ रूपीद्रव्य रोगपरिषह रौद्रध्यान लब्धि १६६ लयपर्याप्तक लाभान्तराय ११ लेश्यामागंणा १२४ लेण्याषट्क ११५ लोकपाल ११३ लोकबिन्दुसार लोकानुप्रेक्षा ___ वचनाराबसंहनन ११२ वर्षभनाराचरांहनन १४७ वध वधपरिषह वन्दना वर्तना वष्णुिर्धमानअवभिशान ११४ वस्सुथुतज्ञान ५४ वस्तुसमासश्रुतमान ७ वाङ निसर्ग १२८ वाचनास्वाध्यायतप ४६ वादर वामनसंस्थान १९२ विग्रहगति १४९ १४९ १६६ मेधा मैथुन मैथुनसंज्ञा मोक्ष मोक्ष १७९ १४९ १४१ B
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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