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________________ २२८ तत्त्वार्थसार दिग्नत दुःख दुःप्रमुष्टनिक्षेपाधिकरण दुःस्बर दुर्भग निद्रानिमा ११७ निराकारोपयोग निर्देश निर्जरा १५० निर्जरा निर्जरानुप्रेक्षा निर्माण १२९ नित्यपर्याप्तक निश्चयीमुनि २८ निषद्यापरिषह १२ निषिद्धिका ५ निसर्गक्रिया १७१ १३ १५ ४७ नीचाँव नीललेश्या १५४ ૨૭ दुष्टिवादात देश देशात देशसंयतगुणस्थान देशसंयम द्रव्य द्रव्यनिक्षेप वक्ष्याथिकनय द्रन्मिय द्वितीयोपशमसम्यग्दर्शन धर्मकथाङ्ग धर्मद्रव्य धर्मस्वास्यातस्त्रानुप्रेक्षा धर्मोपदेशस्वाध्याय धर्मध्यान धारणा ध्यान ध्रुव धौम्य नग्नतापरिषह नभोगति ( विहायोगति ) नंगमनय १९ १४१ २८ १७२ १८. १८५ १०१ न्यमोघपरिमण्डलसंस्थान पश्चलब्धि पश्चास्तिकाम पदश्रुतज्ञान पदसमासश्रुतज्ञान १८४ पद्मलेश्या परत्व परघात परमाणु परिग्रहमाप परिग्रहसंज्ञा परिणाम परिदेवन परिभोगान्त राय ७-८ परिहारछेद ४ परिहारविशुद्धिचारित्र १४७ परोक्षप्रमाण १२८ मय नाम नामनिक्षेप नाराचसंहनन निःसृत ११७ १५४ १८१ निक्षेप १७३ निद्रा ६
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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