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________________ क्षायिक उपभोग धर्म क्षयोपशम हेतु विज्ञान मायिकदर्शन क्षायिकदर्शन क्षायिकज्ञान क्षायिक चारित्र क्षायिकान क्षायिकभाव क्षायिकसम्यक्त्व क्षायिकभोग क्षायिकलाम rforat क्षायोपशमिकचारित्र क्षायोपशमिकभाव चायोपशमिकसम्यक्त्व क्षिप्र क्षीणकषायगुणस्थान क्षुत्परिषह क्षेत्र सुण्ड गति गति गतिमार्गणा गन्ध गर्भजन्म गुण गुणस्थान गुप्ति गोत्र चतुविशस्तव चर्यापरिवह चारित्रविनय पदानुक्रमणी तूर्णं चूर्णिका चोरी छाया छेदोपस्थापना चारित्र जाति जीव जोवत्व ३०-३१ १ १२ ३०-३१ ३० ३० ३० ३० २६-२७ ३० ३०-३१ ३०-३१ ३० २८-२९ २६-२७ २८-२९ 2-67 जीवत्रिकरण | सव ज्ञानत्रतुष्क ज्ञानप्रवाद ज्ञानमार्गणा ज्ञानविनम १६६ १८३ ज्ञानावरण तदवस्य अवधिज्ञान तप व्युत्सर्ग तपोध ४१ तम १६६ ताप २४-२५ १०७ ३१ १४९ ४७ १४९ ६२-६३ ९२ ३५ १६१ १४५ ११ तार्थकत्व तृणस्पर्श परिषद् त्यागधर्म श्रश वायस्त्रिंश कालिक दर्शनक्रिया दर्शनत्रय दर्शन मागंणा दर्शन विनय दर्शनावरण दंश मत्कुण दान दानान्तराय २२७ १०७ १०७ १२८ १०७ १७३ १४९ ३ ३३ ११४ २८ ११ ५८ १८३ १४५ १२ १८१ १६५ १०७ ११७ १५० १६६ १६५ १४९ ረሃ ११ ११२ २८-२९ ५९ १८३ ૪૧ १६६ १३७ १५४
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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