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________________ षष्ठाधिकार कायक्लेश तपका लक्षण मौनं शीतसहिष्णुता | अनेकप्रतिमास्थानं आतपस्थानमित्यादिकायक्लेशो मतं तपः || १३ || अर्थ – अनेक प्रकारके प्रतिमायोग धारण करना, नाना आसनोंसे ध्यानस्थ होना, मौन रहना, शीतकी बाधा सहना तथा धूपमें बैठना इत्यादि कायक्लेश तप माना गया है || १३ ॥ विविशय्यासन सपका लक्षण जन्तुपीडाविमुक्तायां वसतौ शयनासनम् । सेवमानस्य अर्थ -- जहाँ जीवोंको पीड़ा न हो ऐसी वसतिका में शयन आसन करनेवाले मुनिके विविकशय्यासन नामक तप होता है । भावार्थ - जीवजन्तुओंकी वाघासे रहित एकान्त स्थानमें सोना बैठना विविकशय्यासन तप है ।। १४ ।। विज्ञेयं विविक्तशयनासम् ||१४|| आभ्यन्तर तपके छह भेद स्वाध्यायः शोधनं चैव वैrयं तथैव च । व्युत्सर्गो विनयश्चैव ध्यानमाभ्यन्तरं तपः || १५ ।। tor अर्थ – स्वाध्याय, प्रायश्चित्त, बेयावृत्य, व्युत्सर्ग, विनय और ध्यान ये छह आभ्यन्तर तप हैं ।। १५ ।। स्वाध्याय तपके भेव वाचना ग्रच्छनाम्नायस्तथा धर्मस्य देशना | अनुप्रेक्षा च निर्दिष्टः स्वाध्यायः पञ्चधा जिनैः ॥ १६॥ अर्थ- वाचना, प्रच्छना, आम्नाय धर्मोपदेश और अनुप्रेक्षा के भेदसे जिनेन्द्र भगवान्ने पाँच प्रकार स्वाध्याय कहा है ।। १६ ॥ याचना स्वाध्यायका लक्षण वाचनासा परिज्ञेया यत्पात्रे प्रतिपादनम् । गद्यस्य वा पद्यस्य तच्चार्थस्योभयस्य वा ॥१७॥ अर्थ – गद्य-पद्यरूप ग्रन्थका, उसके द्वारा प्रतिपाद्य अर्थका अथवा दोनोंका पात्र के लिये जो देना है— वांचकर सुनाता है उसे वाचना जानना चाहिये ॥ १७ ॥
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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