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________________ षष्ठाधिकार १७३ अर्थ-सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात यह पाँच प्रकारका चारित्र जानना चाहिये ।। ४४ ॥ सामायिकचारित्रका लक्षण प्रत्याख्यानमभेदेन सर्वसावद्यकर्मणः । नित्यं नियतकालं वा वृत्तं सामायिकं स्मृतम् ॥४५॥ अर्थ-सदाके लिये अथवा किसी निश्चित काल तक के लिये अभेदरूपसे समस्त पापकार्योंका त्याग करना सामायिक नामका चारित्र है ।। ४५ ।। __छेदोपस्थापनाचारित्रका लक्षण पत्र हिंसादिभेदेन त्यागः सावधकर्मणः । व्रतलोपे विशुद्धिर्वा छेदोपस्थापनं हि तत् ॥४६॥ अर्थ-जिसमें हिंसा आदिके भेदपूर्वक पापकार्योंका त्याग होता है वह छेदोपस्थाना चारित्र है । अथवा ब्रतमें बाबा मानेपर गुन्न' उसको शुद्धि करनेको छेदोपस्थापना कहते हैं। भावार्थ-छेदोपस्थापना शब्दका समास दो प्रकारसे होता है-'छेदेन उपस्थापनं छेदोपस्थापनम्' और 'छेदे सति उपस्थापनं छेदोषस्थापनम् । प्रथम पक्षमें छेदोपस्थापनाका अर्थ है छेद अर्थात् भेदपूर्वक पापकार्यका त्याग करना, जैसे मेरे हिंसाका त्याग है, असत्यका त्याग है आदि । और दूसरे पक्षमें अर्थ है कि गृहीत ब्रतमें छेद-दोष लगनेपर पुनः प्रायश्चित्तविधिसे उसे शुद्ध करना ।। ४६ ॥ __ परिहारविशुद्धिसंयमका लक्षण विशिष्टपरिहारेण प्राणिघातस्य यत्र हि । शुद्धिर्भवति चारित्रं परिहारविशुद्धि तत् ॥४७|| अर्थ-जिसमें प्राणिघातके एक विशिष्ट प्रकारके त्यागसे शुद्धि होती हैपरिणामोंमें निर्मलता आती है वह परिहारविशुद्धि नामका संयम है । __ भावार्य-जो मनुष्य तीस वर्षको अवस्था तक घरमें सुखसे रहकर समय व्यतीत करता है, अनन्तर दीक्षा लेकर तीर्थङ्करके पादमूलमें रहकर आठ वर्ष तक प्रत्याख्यानपूर्वका अध्ययन करता है उसके तपस्याके प्रभावसे ऐसी विशिष्ट ऋद्धि होती है कि जीवराशिपर चलनेपर भी उसके शरीरसे किसी जीवका घात नहीं होता । इस संयमके धारी मुनि आवश्यक क्रियाओंके करने के बाद प्रतिदिन
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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