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________________ १२६ तस्वार्थसार शुद्धिका उपदेश दिया गया है। भैक्ष्यशुद्धिके अनुसार भोजन ग्रहण करनेवाले मुनि, भ्रामरी, गोचरी, अक्षम्रक्षण, उदराग्नि प्रशमन, तथा गर्तपूरणी इन पाँच वृत्तियोंका ध्यान रखते हुए आदत्तादानके दोषसे निर्मुक्त रहते हैं। उपकरण सम्बन्धी चोरोसे बचनेके लिये ससघर्माविसंवाद नामकी भावना कही है। प्रथम तो प्रत्येक मुनिको अपोनने पीछी, कतारमा गायक गोर काम लेना चाहिये फिर कदाचित् अज्ञानवश कोई मुनि यदि किसी अन्य मुनिके उपकरणको ले लेता है तो उसके पीछे विवाद नहीं करना चाहिये। आखिर उपकरण, निर्वाहके ही साधन हैं ममत्वभाव बढ़ानेके नहीं ।। ६५-६६ ॥ ब्रह्मचर्यप्रतको पाँच भावनाएं स्त्रीणां रागकथाश्रावोऽरमणीयाङ्गवीक्षणम् । पूर्वरत्यस्मृतिश्चैव वृष्येष्टरसवर्जनम् ॥६॥ शरीरसंस्क्रियात्यागश्चतुर्थे पञ्च भावनाः । अर्थ-स्त्रियोंमें राग बढ़ानेवाली कथाओंके सुननेका त्याग करना, स्त्रियोंके रमणीय अङ्गोंके देखने का त्याग करना, पूर्वकालमें भोगी हुई रतिके स्मरणका त्याग करना, कामोत्तेजक गरिष्ठ रसोंका त्याग करना और शरीरके संस्कारका त्याग करना ये पांच ब्रह्मचर्य व्रतको भावनाएं हैं। भावार्थ:-ऊपर कही हुईं पांच बातें मनुष्यको ब्रह्मचर्यसे च्युत करने में सहायक हैं । इसलिये आचार्य ने उपदेश दिया है कि कभी ऐसी कथाएँ या गीत आदि न सुनो, जिनसे स्त्रीविषयफ रागको वृद्धि हो । कभी स्त्रियोंके स्तन, नितम्ब, कुक्षि आदि अङ्गोंको ओर न देखो, जिनसे उनकी ओर आकर्षण बढ़े। कभी पहले भोगे हुए भोगोंका स्मरण न करो जिनसे स्त्रीको आवश्यकता अनुभवमें आवे । सदा ऐसा सात्विक आहार करो जिससे इन्द्रियों में उत्तेजना उत्पन्न न हो और शरीरका ऐसा संस्कार न करो जिससे स्त्रियाँ तेरी ओर आकृष्ट हों। इन पाँच बातोंकी ओर सजग दृष्टि रखनेसे ही ब्रह्मचर्य की रक्षा हो सकती है ।। ६७ ॥ अपरिग्रह व्रतको पाँच भावनाएं मनोज्ञा अमनोज्ञाश्च ये पञ्चेन्द्रियगोचराः ॥६८॥ रागद्वेषोज्झनान्येषु पञ्चमे पञ्च भावनाः । अर्थ-स्पर्शनादि पाँच इन्द्रियोंके जो इष्ट और अनिष्ट विषय हैं उनमें रागद्वेषका त्याग करना अपरिग्रहवतकी पांच भावनाएँ हैं ।
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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