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चतुर्थाधिकार सत्यवतको पाँच भावनाएँ क्रोधलोमपरित्यागौ हास्यभीरुत्ववर्जने ॥६॥
अनुवीचिवचश्चेति द्वितीये पञ्च भावनाः । अर्थ-क्रोधत्याग, लोभत्याग, हास्यत्याग, भयत्याग और अनुवीचि भाषणआचार्य परम्पराके अनुसार भाषण करना ये पाँच सत्यव्रतको भावनाएँ हैं ।
भावार्थ-मनुष्य कषाय और अज्ञान इन दो कारणोंसे असत्य बोलता है । कषायसम्बन्धी असत्य क्रोध, लोभ, हास्य और भयके भेदसे चार प्रकारका होता है अतः इन चारों कषायोंके त्यागका उपदेश देकर आचार्यने मनुष्यको कषायजन्य असत्यसे बचनेका उपाय बतलाया है। आगमका ज्ञान न होने अज्ञानजन्य असत्य बोला जाता है उससे बचनेके लिये आचार्यने अनुवीचि भाषण-आज सम्परा 'अपना सन माप करनेकी बात कही है। जो आगमके अनुकूल भाषण करना चाहेगा उसे आगमका अभ्यास अवश्य करना होगा और आगमका अभ्यास करनेसे अज्ञानजन्य असत्यसे सुरक्षाअनायास हो जावेगी 11 ६४ ।।
अौर्यवतकी पांच भावनाएं शून्यागारेषु वसनं विमोचितगृहेषु च ।।६।। उपरोधाविधानं च भैत्यशुद्धिर्यथोदिता ।
ससधर्माविसंवादस्तृतीये पञ्च भावनाः ॥६६॥ अर्थ--शून्यागारवास-वृक्षोंको कोटर तथा पर्वतोंकी गुफा आदि प्राकृतिक निर्जनस्थानोंमें रहना, बिमोचितगृहावास-जिन गृहोपर उनके स्वामियोंने अपना आधिपत्य छोड़ दिया है ऐसे गृहोंमें निवास करना, उपरोधाविधानअपने स्थानपर किसी अन्य मुनिके ठहर जानेगर बाधा नहीं करना, यथोदित भैक्ष्यशुद्धि-चरणानुयोगमें निरूपित विधिके अनुसार भिक्षाको शुद्धि रखना और ससधर्माविसंवाद-किसी उपकरणको लेकर सहधर्मा बन्धुओंके साथ विवाद नहीं करना ये पाँच अचौर्मवतकी भावनाएं हैं। __भावार्थ-मनुष्य तीन प्रकारकी चोरी करता है-१ स्थान सम्बन्धी २ भोजन सम्बन्धी और ३ उपकरण सम्बन्धी। इनमें स्थान सम्बन्धी चोरोसे बचनेके लिये तीन भावनाएं बतलाई हैं. शून्यागारावास, विमोचिताबास और परोपरोधाकरण। इन भावनाओंका. पालन करनेसे स्थान सम्बन्धी चोरीसे रक्षा हो सकती है। भोजन सम्बन्धी चोरीसे बचने के लिये आगमानुकूल भैक्ष्य