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________________ तत्वार्थसार अर्थ - - हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रहसे निवृत्ति होनेको जिनेन्द्रभगवान् व्रत कहते हैं || ६० ॥ १२४ महाव्रत और अणुव्रत के लक्षण कार्त्स्न्येन विरतिः पुंसां हिंसादिभ्यो महाव्रतम् । विरतिर्विजानीयादणुव्रतम् एकदेशेन ॥६१॥ अर्थ- हिंसादि पाँच पापोंसे पुरुषोंकी सर्वदेश निवृत्ति होने को महाव्रत और एकदेश निवृति होनेको अणुव्रत जानना चाहिये ॥ ६१ ॥ व्रतोंकी पांच-पांच भावना कहने की प्रतिज्ञा व्रतानां स्थैर्यसिद्धयर्थं पञ्च पञ्च प्रतिव्रतम् । भावनाः सम्प्रतीयन्ते मुनीनां भावितात्मनाम् ॥ ६२ ॥ अर्थ — आत्मस्वरूपकी भावना करनेवाले मुनियोंके लिये उक्त व्रतोंकी स्थिरता के अर्थ प्रत्येक व्रतकी पाँच-पाँच भावनाएँ कही जाती हैं ॥ ६२ ॥ अहिंसाव्रतकी पाँच भावनाएँ च । चोगुप्तिर्मनोगुप्तिरीय समिति रेव ग्रहनिक्षेपसमितिः पानामभवलोकितम् || ६३ ॥ इत्येताः परिकीर्त्यन्ते प्रथमे पञ्च भावनाः । अर्थ- वचनगुप्ति, मनोगुप्ति, ईर्यासमिति, आदाननिक्षेपणसमिति और आलोकित पान - भोजन ये पाँच प्रथम व्रत अहिंसावतकी भावनाएं कही जाती हैं । भावार्थ – मनुष्यसे, वाचनिक, मानसिक, चलने फिरने सम्बन्धी, किसो बस्तुके रखने उठाने सम्बन्धी और भोजन सम्बन्धी यह पांच प्रकारको हिसा होती है । अन्य सभी हिंसाओं का समावेश इन्हीं पाँच हिंसाओं में हो जाता है । आचार्यने वाचनिक - वचन सम्बन्धी हिंसासे बचनेके लिये वचनगुप्तिकर, मानसिक - मनसम्बन्धी हिंसासे बचने के लिये मनोगुप्तिका चलने फिरने सम्बन्धी हिंसा से बचने के लिये ईयसमितिका रखने उठाने सम्बन्धी हिंसासे बचनेके लिये आदाननिक्षेपण समितिका और भोजन सम्बन्धी हिंसासे बचनेके लिये आलोकिस पान - भोजन --- देखते हुए भोजनपान के ग्रहण करनेका उपदेश दिया है । इनका पालन करनेसे मनुष्य हिंसापापसे सुरक्षित रह सकता है ।। ६३ ।। r 1
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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