SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयाधिकार ५१ अर्थ-३ - शम्बूक, शङ्ख, शुक्ति–सीप, गिंडोले, कौंड़ी तथा पेटके कीड़े आदि ये दो इन्द्रिय जीव माने गये हैं ॥ ५३ ॥ श्रीन्द्रिय जीवोंके नाम कुन्थुः पिपीलिका कुम्भी वृश्चिकश्चेन्द्रगोपकः । घुणमत्कुणयुकाग्रास्त्रीन्द्रियाः सन्ति जन्तवः || ५४ || अर्थ - कुन्थु, चिउटी, कुम्भी (?) बिच्छू, वीरबहूटी, घुनका कोड़ा, खटमल, चीलर - जुना आदि तीन इन्द्रिय जीव हैं ||१४|| चतुरिन्द्रिय जीवोंके नाम । मधुपः कीटको दंशमशकौ मक्षिकास्तथा । वरटी शलभाद्याश्च भवन्ति चतुरिन्द्रियाः || ५५ ।। अर्थ -- भौंरा, उड़नेवाले कीड़े, डांस, मच्छर, मक्खी, वरं तथा टिड्डी आदि चार इन्द्रिय जीव हैं ॥ ५५ ॥ पञ्चेन्द्रिय जीवोंके नाम पञ्चेन्द्रियाश्च मर्त्याः स्युर्नारिकास्त्रिदिवौकसः । तिर्यञ्चोऽप्युरगा भोगिपरिसर्प चतुष्पदाः || ५६ ।। अर्थ - मनुष्य, नारकी, देव, तिर्यञ्च, साँप, फणावाले नाग, सरकनेवाले अजगर आदि तथा चौपाये पाँच इन्द्रिय जीब हैं ॥ ५६ ॥ पृथ्वोकायिक आदि जीवोंका आकार मसूराम्बुपृषत्सूची कलापध्वजसन्निभाः । धराप्तेजोमरुत्काया नानाकारास्तस्त्रसाः ॥५७॥ अर्थ --- पृथिवी, जल, अग्नि और वायुकायिक जीवोंका आकार क्रमसे मसूर, पानीकी बूँद, खड़ी सुइयोंका समूह तथा ध्वजाके समान है। वनस्पतिकायिक और सजीव अनेक आकारके होते हैं ।। ५७ ॥ पृथिवीकायिक जोबोंके छत्तीस भेव मृत्तिका वालुका चैव शर्करा लवणोऽयस्तथा ताम्रं त्रपुः चोपलः शिला । सीसकमेव च ॥ ५८ ॥
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy