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________________ ३४ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती नेन्द्रियमनिन्द्रियम् । नो इन्द्रियं च प्रोच्यते । अत्रेषदर्थे प्रतिषेधो द्रष्टव्यो यथाऽनुदरा कन्येति । तेनेन्द्रियप्रतिषेवेनात्मनः करणमेव मनो गृह्यते । तदन्तःकरणं चोच्यते । तस्य बाह्य न्द्रियैर्ग्रहणाभावादन्तर्गतं करणमन्तःकरणमिति व्युत्पत्तेः । निमित्तं कारणं हेतुरित्यर्थः । तन्मत्यादिप्रकारं ज्ञानमिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तं नार्थजन्यमर्थस्य ग्राह्यत्वेन कर्मरूपत्वात् तत्र चाद्यं मतिरूपमिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम् । स्मृत्यादिकं पुनरनिन्द्रियनिमित्तमिति विशेषो द्रष्टव्यः । मतिज्ञानभेदप्रतिपत्त्यर्थमाह ___अवग्रहहावायधारणाः ॥ १५॥ विषयविषयिसम्बन्धे सति श्वेतत्वादिविशेषरहितवस्तुसत्तावभासिनी निर्विकल्पिका दर्शनाख्या प्रतीतिर्जायते । तदनन्तरं अवग्रहो भवति । यथा तदहर्जातस्य प्रथमसमयोन्मेषकाले बालकस्य श्वेतत्वा और कर्म से मैले ऐसे आत्मा का जो लिंग-चिह्न है उसे इन्द्रिय कहते हैं अथवा पदार्थ के जानने में ज्ञाता को जो सहकारी हो वह इन्द्रिय है । इन्द्र नाम कर्म को भी कहते हैं जो उससे जन्य है उसे इन्द्रिय कहते हैं । “न इन्द्रियं अनिन्द्रियं अथवा नो इन्द्रियं" इसप्रकार यहां अनिन्द्रिय शब्द की निरुक्ति है, यहां ईषत्-किंचित् अर्थ में न समास हुआ है, जैसे अनुदरा कन्या । इन्द्रिय के प्रतिषेध करके जो आत्मा का करण हो वह ग्रहण किया है अनिन्द्रिय शब्द मनका वाचक है उसे अन्तःकरण भी कहते हैं । क्योंकि बाह्य स्पर्शनादि इन्द्रिय द्वारा ग्रहण नहीं होने से अंदर का करण अन्तःकरण ऐसी व्युत्पत्ति है । निमित्त का अर्थ कारण या हेतु है । वह मति आदि प्रकार का [ मति, स्मृति इत्यादि ] ज्ञान इन्द्रिय और मन के निमित्त से होता है, वह ज्ञान पदार्थ से उत्पन्न नहीं होता, क्योंकि पदार्थ तो ज्ञान द्वारा ग्राह्य होने से ज्ञान की जानन रूप क्रिया के कर्म हैं। भाव यह है कि बौद्ध लोग ज्ञान पदार्थ से पैदा होता है ऐसा मानते हैं, उनका कहना ठीक नहीं है ज्ञान जड़ पदार्थ से पैदा न होकर इन्द्रिय अनिन्द्रिय की सहायता से होता है, पदार्थ तो ज्ञान के विषय हैं न कि जनक अस्तु । मति, स्मृति, संज्ञा आदि ज्ञानों में से पहला मतिरूप ज्ञान इन्द्रिय और मन के निमित्त से होता है। स्मृति आदिक तो अनिन्द्रिय-मन से होते हैं ऐसा विशेष जानना चाहिये। मतिज्ञान के भेद बतलाते हैं सूत्रार्थ-अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा ये मतिज्ञान के भेद हैं । विषय और विषयी [ पदार्थ और ज्ञान ] के संबंध होने पर सफेद आदि की विशेषता से
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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