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________________ प्रथमोऽध्यायः [ २९ नयैरधिगम इत्यनेनैव तत्प्रतिपत्तिसिद्धौ किमन्यसूत्रारम्भेणेति । ते च सदादयः सकलादेशित्वाच्छ ताख्यप्रमाणात्मका:, विकलादेशित्वान्नयात्मकाश्च भवन्ति । तेषां च जीक्स्थानगुणस्थानमार्गरणास्थानबेदिभिरागमानुसारेण योजना कर्तव्या। तदेवं सम्यग्दर्शनं व्याख्यातम् । तदनन्तरमिदानी सम्यग्ज्ञानं विचाराहमिति तत्प्रतिपादनार्थमाह मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानि जानम् ॥ ६ ॥ मतिज्ञानावरणक्षयोपशमे सति पञ्चभिरिन्द्रियैर्मनसा च यथास्वमर्थान्मन्यते मनुते वा पुरुषो यया सा मतिः । मननमात्रं वा मतिः । निरूप्यमाणं यदेव श्रूयते ज्ञायते येन तदेव श्रुतम् । शृणोति जानातीति वा श्रुतम् । श्रवणमात्रं वा श्रुतम् । अवाग्धीयते पुद्गलद्रव्यस्य तद्विषयस्याधः प्राचुर्यादधः प्रयुज्यते अवच्छिन्नविषयो वा ज्ञानविशेषोऽवधिः । परकीयमनोगतोर्थोऽपि मन उच्यते तत्साहचर्यात् । तस्य पर्ययणं परिगमनं समन्ताद्बोधनं मनः पर्ययः । तत्र ज्ञानसाधनत्वं प्रति मनसो न प्राधान्यम् । तत्र योग्य होते हैं, इस दृष्टि से संक्षेप रुचि, मध्यम रुचि और विस्तर रुचि शिष्यों को समझाने के लिये क्रमशः तीन सूत्र [प्रमाण, निर्देश, सत्] सूत्रकार उमास्वामी आचार्य देव ने रचे हैं। यदि तीक्ष्ण बुद्धि वाले संक्षेप रुचि शिष्य ही प्रतिपाद्य होते तो "प्रमाणनयरधिगमः" इस एक सूत्र से ही उनको प्रतीति हो जाती अन्य सूत्र के आरंभ से प्रयोजन ही नहीं रहता।। ये सत् आदि अनुयोग सकलादेशी [ सकल रूप से वस्तु के प्रतिपादक ] हैं तो श्रुत नाम के प्रमाण स्वरूप हैं और यदि विकलादेशी [ एकदेश रूप से वस्तु के प्रतिपादक ] हैं तो नय ज्ञान स्वरूप हैं । गुणस्थान, मार्गणास्थान और जीवस्थानों को जानने वाले पुरुषों को इन अनुयोगों की आगमानुसार योजना करनी चाहिये। इसतरह सम्यग्दर्शन का व्याख्यान किया, उसके अनन्तर अब सम्यग्ज्ञान विचारने योग्य है अतः उसके प्रतिपादन के लिये सूत्र कहते हैं सूत्रार्थ-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान ये पांच सम्यग्ज्ञान हैं मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम होने पर पांच इन्द्रियां और मन के द्वारा यथा योग्य अपने विषयभूत पदार्थों को जिसके द्वारा जाना जाता है, अथवा जिसके द्वारा पुरुष उक्त पदार्थों को जानता है वह मति है “मन्यते मनुते अर्थान् इति मतिः"
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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