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प्रथमोऽध्यायः
[ २५ प्रमाणनयरधिगमः ॥ ६॥ सामान्यविशेषात्मकवस्तुपरिच्छेदकं प्रमाणम् । तद्वधा-प्रत्यक्षपरोक्षभेदात् । तत्र च श्रुताख्यं प्रमाणमधिगमजसम्यग्दर्शनोत्पत्तेर्मु ख्यो हेतुः । श्रुताख्यप्रमाणग्राह्यवस्त्वेकदेशद्रव्यपर्यायविषया नयाः । प्रमाणे च नयाश्च प्रमाणनया वक्ष्यमाणलक्षणास्तैस्तत्त्वार्थानामधिगमो निश्चयः क्रियते । मध्यमरुचिविनेयाभिप्रायवशात्तत्त्वार्थाधिगमोपायान्तरसूचनार्थमुच्यते
निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानतः ॥ ७॥ ___किलक्षणं सम्यग्दर्शनम् । किंलक्षणो जीव इति वा प्रश्ने "तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शन" "चेतनालक्षणो जीव" इति वा वस्तुस्वरूपकथनं निर्देशः । कस्य सम्यग्दर्शनं जीवो वेत्यनुयोगे जीवस्य
जो अधिगमज सम्यक्त्व की उत्पत्ति में हेतु भूत हैं उन जीवादि तत्त्वों के अधिगम के उपाय का निरूपण करते हैं
सूत्रार्थ-प्रमाण और नयों द्वारा जीवादि पदार्थों का ज्ञान होता है।
सामान्य विशेषात्मक पदार्थ होते हैं ऐसे सत्यभूत पदार्थों को जानने वाला ज्ञान प्रमाण कहलाता है, उसके दो भेद हैं, प्रत्यक्ष प्रमाण और परोक्ष प्रमाण । उसमें श्रुत नामका जो प्रमाण है वह सम्यक्त्व के उत्पत्ति में प्रमुख कारण है । श्रुत संज्ञक प्रमाण द्वारा ग्रहण करने योग्य वस्तु के द्रव्य और पर्यायरूप एकदेश-अंश को विषय करने वाले नय होते हैं । प्रमाण और नय इन पदों में द्वन्द्व समास हुआ है। प्रमाण और नयों का लक्षण आगे कहेंगे, उन प्रमाण और नयों द्वारा तत्त्वार्थों का अधिगम अर्थात निश्चय किया जाता है।
मध्यम रुचि वाले शिष्यों के अभिप्राय के अनुसार तत्त्वार्थों के जानने के अन्य उपायों को सूचित करते हुए अग्रिम सूत्र अवतरित होता है
सूत्रार्थ-निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति और विधान इनसे भी जीवादि तत्त्वों का अधिगम-ज्ञान होता है । सम्यक्त्व का लक्षण क्या है ? जीव किस लक्षण वाला है इत्यादि प्रश्न होने पर तत्त्वार्थों के श्रद्धान को सम्यक्त्व कहते हैं, चेतना लक्षण वाला जीव होता है इसप्रकार वस्तुस्वरूप का कथन करना निर्देश कहलाता है। सम्यक्त्व या जीव किसके होते हैं ऐसा प्रश्न होने पर जीवके सम्यग्दर्शन होता है अर्थात्