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________________ २२ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती प्रतिपत्तव्यम् । तद्वयतिरिक्त नो आगमद्रव्यं द्वेधा-कर्म नोकर्मभेदात् । कर्म नो भागमद्रव्यमनेकविधंज्ञानावरणादिकर्मविकल्पात् । तद्वन्नो कर्म नो आगमद्रव्यम् । शरीरोपचयापचयनिमित्तपुद्गलद्रव्यस्यानेकरूपत्वात् । तस्यापि नो आगमद्रव्यसम्बन्धादेव ज्ञायकशरीरवत् । तद्वयतिरिक्तत्वं च कर्म नोकर्मणोरौदारिकादिज्ञायकशरीरत्वाभावात् भावि नो आगमद्रव्यत्वाभावाच्च निश्चीयते । वर्तमानतत्परिणामात्मकं द्रव्यमेव भावः । सोप्यागम नो अागमविकल्पात् द्विप्रकारः। तत्र जीवप्राभृतज्ञस्त निक्षेप द्वारा लोक व्यवहार प्रचलित होता है । आगे शेष दो निक्षेपों का कथन कर रहे हैं। __ आगामी पर्याय के अभिमुख वस्तु को द्रव्य निक्षेप कहते हैं अथवा जो अतीत पर्याय हो चुकी है उसको अपेक्षा से वस्तु का कथन करना द्रव्य निक्षेप है, इसके दो भेद हैं आगम द्रव्य और नो आगम द्रव्य । उनमें जो जीव संबंधी शास्त्र का ज्ञाता है किन्तु वर्तमान में उस श्रुत ज्ञान के विकल्प से रहित है उस पुरुष को आगम जीव द्रव्य कहते हैं। नो आगम द्रव्य के तीन भेद हैं-जीव शास्त्र के ज्ञाता पुरुष का शरीर नो आगम द्रव्य १, भावि नो आगम द्रव्य २ और तद् व्यतिरिक्त नो आगम द्रव्य ३ । उनमें जीव शास्त्र के ज्ञाता पुरुष का शरीर रूप जो प्रथम भेद है उसके भूत, भविष्य और वर्तमान की अपेक्षा से तीन भेद हैं। अनुपयुक्त आगम जीव द्रव्य का सम्बन्ध होने से तथा उससे बाह्य रूप होने से शरीर में नो आगम द्रव्यपना घटित होता है । आगामी काल में अपने परिणाम के योग्य जो वस्तु है उसे भावि नो आगम द्रव्य कहते हैं । भावि नो आगम द्रव्य का ऐसा लक्षण होने के कारण यही मुख्यतया द्रव्य निक्षेप स्वरूप है, अन्य सब भेद उपचार से नो आगम द्रव्य रूप हैं। तद् व्यतिरिक्त नो आगम द्रव्य के भी दो भेद हैं कर्म और नोकर्म । कर्म नो आगम द्रव्य ज्ञानावरण आदि कर्म प्रकृति रूप अनेक प्रकार का है ऐसे ही नो कर्म नो आगम द्रव्य निक्षेप के अनेक भेद हैं, क्योंकि शरीर के वृद्धि और ह्रास के निमित्त रूप जो पुद्गल है वह अनेक प्रकार का है। जैसे ज्ञायक के शरीर को अनुपयुक्त आगम जीव द्रव्य के संबंध से नो आगम द्रव्यपना माना है वैसे नोकर्म पुद्गल का नो आगम द्रव्यपना है । इन कर्म और नो कर्म को "तद् व्यतिरिक्त" इस नाम से इसलिये कहते हैं कि ये औदारिक आदि ज्ञाता के शरीर रूप नहीं हैं तथा इनमें भावी नो आगम द्रव्यपना भी
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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