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________________ ५५६ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती मयत्वाच्च सुखस्येति । अनाकारत्वान्मुक्तानामभाव इति चेत्तन्नाऽतीतशरीराकारत्वात् । स्यान्मतं तेयदि शरीरानुविधायी जीवस्तहि तदभावात्स्वाभाविकलोकाकाशप्रदेशपरिणामत्वात्तावद्विसर्पणं प्राप्नोतीति । नैष दोषः । कुत इति चेत्-कारणाभावादिति ब्र महे-नाम कर्मसम्बन्धो हि संहरणविसर्पणकारणम् । तदभावात्पुनः संहरणविसर्पणाभावः । यदि कारणाभावान्न संहरणविसर्पणं तर्हि गमनकारणाभावादूवं गमनमप्राप्नोति । अधस्तिर्यग्गमनाभाववत् । ततो यत्रैव मुक्तस्तत्रैवावतिष्ठेतेत्यत्रोच्यते समाधान-यह कोई दोष नहीं है, अनन्तवीर्यादि भाव ज्ञान और दर्शन के अविनाभावी है, ज्ञान दर्शन के ग्रहण से उनका ग्रहण स्वतः हो जाता है। इसका भी कारण यह है कि जो अनन्त वीर्यशाली नहीं है उसके अनन्त पदार्थों का अवबोध (ज्ञान) नहीं हो सकता । तथा सुख ज्ञानमय होता है अतः अनन्त सुख का भी अनंत ज्ञान में अन्तर्भाव हो जाता है । शंका-मुक्त जीवों का कोई आकार नहीं होता अतः उनका अभाव है ? समाधान-ऐसा नहीं है, मुक्तात्मा अतीतचरम शरीर के आकार युक्त होते हैं । शंका-जैन जीव को शरीर के आकार का अनुसरण करने वाला मानते हैं, अतः जब मक्तावस्था में शरीर का अभाव होगा उस वक्त आत्मा के लोकाकाश प्रमाण जो प्रदेश हैं, स्वभाव में आने से वे प्रदेश लोकाकाश प्रमाण में फैल जायेंगे। अर्थात् मुक्तावस्था में जीव सर्वलोक में फैलकर रहेगा ? __समाधान-ऐसा नहीं होता, क्योंकि इस तरह होने में कोई हेतु नहीं है। देखिये ! नामकर्म के सम्बन्ध से आत्मा के प्रदेशों में संकोच और विस्तार होता है, संकोच विस्तार का कारण तो नामकर्म है उसका अभाव हो जाने से मुक्त जीव के प्रदेश संकोच विस्तार को प्राप्त नहीं होते । शंका-यदि कारण के अभाव होने से संकोच विस्तार नहीं मानते हैं तो उन मक्त जीवों के गमन का कारण भी नहीं रहा है अतः उनका ऊर्ध्वगमन भी नहीं होगा। जिस प्रकार कि अधः (नीचे की ओर) तथा तिरछेरूप से गमन नहीं होता। इस प्रकार गमन का अभाव सिद्ध होने से जिस स्थान पर कर्मों से छूट जाते हैं उसी स्थान पर वे जीव ठहर जाते हैं ऐसा मानना चाहिए ? समाधान-इस विषय को अगले सूत्र में कहते हैं
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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