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________________ दशमोऽध्यायः [ ५५५ . प्रौपशमिकादिभव्यत्वानां च ॥३॥ किम् ? मोक्ष इत्यनुवर्तते । भव्यत्वग्रहणमन्यपारिणामिकभावानिवृत्त्यर्थम् । तेन पारिणामिकेषु मध्ये भव्यत्वस्य पारिणाभिकस्य औपशमिकादीनां च भावानामभावात् मोक्षो भवतीत्यवगम्यते । क्षायिकसम्यक्त्वादीनामपि विप्रमोक्षो मोक्ष इत्यतिप्रसङ्गनिवृत्त्यर्थमाह अन्यत्र केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनसिद्धत्वेभ्यः ॥४॥ ... वर्जनार्थाऽन्यशब्दापेक्षया पञ्चमीनिर्देश। । केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनसिद्धत्वेभ्योऽन्यस्मिन्नयं विधिरिति यदि चत्वार एवावशिष्यन्ते तानन्तवीर्यादीनां निवृत्तिः प्राप्नोतीति चेन्नैष दोषः-ज्ञानदर्शनाविनाभावित्वादनन्तवीर्यादीनामवसेयम् । अनन्तवीर्यहीनस्याऽनन्तार्थाऽवबोधत्वस्याभावात्, ज्ञान पुराने कर्मकी निर्जरा होने पर ही मोक्ष होता है, ऐसा हमारे जैन मतमें दृढ़ सिद्धांत है। और किनके छूटने पर मोक्ष होता है ऐसा प्रश्न होने पर सूत्र कहते हैं- सूत्रार्थ-औपशमिक आदि भावों के छूट जाने पर या नाश होने पर मोक्ष होता है। . .. " मोक्ष का प्रकरण है, सूत्र में भव्यत्व भाव लिया है उससे यह ज्ञात होता है कि अन्य पारिणामिक भाव जो जीवत्व है उसका नाश नहीं होता। अर्थात् पारिणामिकों में भव्यत्व नामका पारिणामिक भाव और औपशमिक आदि भाव, इन भावों का अभाव होने पर मोक्ष होता है । क्षायिक सम्यक्त्व आदि भावों का भी नाश होना मोक्ष है ऐसा अनिष्ट प्रसंग न आ जाय इसके लिये अगला सूत्र अवतरित होता है । सूत्रार्थ-सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन और सिद्धत्व भावको छोड़कर अन्य भाव नष्ट होते हैं अर्थात् सम्यक्त्व आदि चार भाव मुक्ति में रहते हैं नष्ट नहीं होते। वर्जन अर्थ वाले अन्य शब्द की अपेक्षा सूत्र में पंचमी विभक्ति आयी है। केवल सम्यक्त्व ज्ञान, दर्शन और सिद्धत्व से अन्य में यह विधि है । अर्थात् नाश की विधि इन चारों भावों को छोड़कर शेष भावों में है। शंका-यदि ये चार ही भाव अवशेष रहते हैं तो मुक्त जीवों के अनन्त वीर्य आदि का भी नाश हो जायगा ? .
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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