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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती साम्पराययोः पूर्वयोश्च । निर्ग्रन्थस्नातका एकस्मिन्नेव यथाख्यातसंयमे वर्तन्ते । श्रुतं-पुलाकवकुशप्रतिसेवनाकुशीला उत्कर्षेणाभिन्नाक्षरदशपूर्वधराः कषायकुशीला निम्रन्थाश्चतुर्दशपूर्वधराः । जघन्येन पुलाकस्य श्रु तमाचारवस्तु । वकुशकुशीलनिर्ग्रन्थानामष्टी प्रवचनमातरः । स्नातका अपगतश्रृताः केवलिनः । प्रतिसेवना-पञ्चानां मूलगुणानां रात्रिभोजनवर्जनस्य च पराभियोगाबलादन्यतमं प्रतिसेवमानः पुलाको भवति । वकुशो द्विविधः- उपकरणवकुश: शरीरवकुशश्चेति । तत्रोपकरणवकुशो बहुविशेषयुक्तोपकरणकांक्षी। शरीरसंस्कारसेवी शरीरवकुशः । प्रतिसेवनाकुशीलो मूलगुणानविरोधयन्नुत्तरगुणेषु कांचिद्विराधनां प्रतिसेवते । कषायकुशीलनिर्ग्रन्थस्नातकानां प्रतिसेवना नास्ति । दोषसेवा प्रतिसेवनोच्यते । तीर्थमिति सर्वे सर्वेषां तीर्थकराणां तीर्थेषु भवन्ति । लिङ्ग द्विविधम्-द्रव्यलिङ्ग भावलिङ्ग चेति । भावलिङ्गप्रतीत्य पञ्चापि लिङ्गिनो भवन्ति सम्यग्दर्शनादे: परिणामस्य सद्भावात् । द्रव्यलिङ्ग प्रतीत्य भाज्याः केषाञ्चित्क्वचित्कदाचित्कुतश्चित्कथञ्चित्प्रावरणसद्भावात् ।
से युक्त होते हैं । निर्ग्रन्थ और स्नातकों के एक यथाख्यात संयम होता है। श्रत की अपेक्षा-पुलाक, बकुश और प्रतिसेवना कुशील उत्कर्ष से अभिन्न दश पूर्वधर होते हैं । कषाय कुशील और निर्ग्रन्थ उत्कर्ष से चतुर्दश पूर्वधर होते हैं। जघन्य से पुलाक का श्र तज्ञान आचार वस्तु है, और बकुश कुशील तथा निर्ग्रन्थों का श्रुत अष्ट प्रवचन मातृका है । स्नातक श्रृ तज्ञान रहित हैं क्योंकि वे तो केवलज्ञानी हैं। प्रतिसेवना की अपेक्षा कथन करते हैं-पुलाक मुनि के पांच मूलगुण तथा रात्रि भोजन त्याग व्रत में परके द्वारा हटात् कोई एक व्रत की विराधना होती है-प्रतिसेवना होती है । बकुश दो प्रकार के हैं-शरीर बकुश और उपकरण बकुश । उनमें उपकरण बकुश के बहुत से उपकरण विशेष की कांक्षा होती है । शरीर संस्कार का सेवी शरीर बकुश कहा जाता है । प्रतिसेवना कुशील मूलगुणों की विराधना नहीं करता किन्तु उत्तर गुणों में कुछ विराधना करता है, यही इसकी प्रतिसेवना है । कषाय कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातकों के प्रतिसेवना नहीं होती । दोष करने को प्रतिसेवना कहते हैं। तीर्थ की अपेक्षा कथन करते हैं-सभी तीर्थंकरों के तीर्थ में ये सब प्रकार के मुनिराज होते हैं। लिंग की अपेक्षा प्रतिपादन करते हैं-लिंग दो प्रकार का है-भावलिंग और द्रव्यलिंग । भाव लिंग की अपेक्षा पांचों मुनि महाराज भावलिंगी होते हैं, क्योंकि सभी के सम्यक्त्व आदि परिणाम विद्यमान रहते हैं । द्रयलिंग की अपेक्षा भजनीय है । वह इस प्रकार है कि किसी किसी मुनि के कभी कहीं पर किसी कारणवश (उपसर्गवश) किसी प्रकार से प्रावरण सम्भव है । लेश्या की अपेक्षा वर्णन करते हैं-पुलाक के उत्तरवर्ती तीन