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________________ नवमोऽध्याय। [ ५४३ वितर्कः श्रुतम् ॥ ४३ ॥ मतिज्ञानविशेषश्चिन्ताख्यो न वितर्कः किं तहिं तत्पूर्वकं श्रुतशब्दयोजनासहितं वितर्कणमूहनं वितर्क इत्याख्यायते । कोऽयं विचार इत्याह विचारोऽर्थव्यञ्जनयोगसंक्रान्तिः॥४४॥ द्रव्यात्पर्यायार्थे पर्यायाच्च द्रव्यार्थे संक्रमणमर्थसंक्रान्तिः । कुतश्चिच्छ तवचनाच्छब्दान्तरे संक्रमणं व्यञ्जनसंक्रान्तिः । कायवर्गणाजनितकायपरिस्पन्दाद्योगान्तरे, स्ववर्गणाजनितपरिस्पन्दाख्याद्योगान्तरात्काययोगे संक्रमणं योगसंक्रान्तिः सविचार इत्याख्यायते। विविधचरणस्य विचारत्वात्तदनेन प्रथमशुक्लध्यानं पृथक्त्ववितर्कमुक्त भवति । द्रव्यपर्याययोः पृथक्त्वेन भेदेन वितर्को विचारश्चास्मिन्निति सूत्रार्थ-श्रुतज्ञान को वितर्क कहते हैं । चिन्ता स्वरूप वितर्क मतिज्ञान विशेष नहीं है, किन्तु मतिज्ञानपूर्वक होने वाला शब्द योजना सहित जो श्रुत है वह वितर्क है । 'वितर्कणं ऊहनं इति वितर्कः' ऐसी व्युत्पत्ति है। प्रश्न-विचार किसे कहते हैं ? उत्तर-इसी को सूत्र द्वारा बताते हैंसूत्रार्थ-अर्थ, व्यञ्जन और योगों का संक्रमण होना विचार कहलाता है । द्रव्य से पर्याय में और पर्याय से द्रध्य में संक्रमण होना अर्थ संक्रान्ति है । किसी एक श्रुत के वचन से अन्य वचन में संक्रमण होना व्यञ्जन संक्रान्ति है। कायवर्गणा से जनित जो काय में परिस्पंदरूप योग होता है उस योग से योगान्तर में संक्रमण होना अथवा अपनी वर्गणा से जनित परिस्पन्दरूप जो भी योग होता है उस नाम वाले योग से पुनः काय योग में संक्रमण होना योग संक्रान्ति कहलाती है। ये संक्रान्तियां विचार नाम से कही जाती हैं। विविध रीत्या परिवर्तन (विचार) होने के कारण प्रथम शुक्ल ध्यानको पृथक्त्व वितर्क कहते हैं । द्रव्य और पर्याय में पृथक्त्वरूप से (भेद से) वितर्क और विचार है जिसमें वह पृथक्त्व वितर्क सविचार शुक्लध्यान है, इस प्रकार इस ध्यान का शब्दार्थ है (एकत्ववितर्क अविचार नामका शुक्लध्यान भी अन्वर्थ संज्ञक है। एक अभेद रूप से है वितर्क जिसमें तथा विचार परिवर्तन से जो रहित है वह
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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