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नवमोऽध्यायः
[ ५३९ हिंसाऽनृतस्तेयविषयसंरमणेभ्यो रौद्रमविरतदेशविरतयोः ॥३५ ।।
नन्वस्तु तावदविरतस्य हिंसादिभ्यो हेतुभ्यो रौद्र तस्य सद्भावात्, देशविरतस्य तु कथम् ? तस्य तदभावादिति चेत्-तस्यापि हिंसाद्यावेशाद्वित्तादिसंरक्षणतन्त्रत्वाच्च स्मृतिसमन्वाहारस्यानुवृत्तेः सामर्थ्यादेव हिंसादीनां स्मृतिसमन्वाहारो रौद्र हिंसादिभ्यः प्रादुर्भावात् । धर्म्यप्रतिपादनार्थमाह
__ प्राज्ञाऽपायविपाकसंस्थानविचयाय धर्म्यम् ॥ ३६ ॥ विचयः परीक्षा। सर्वज्ञाज्ञयाऽत्यन्तपरोक्षार्थावधारणार्थमित्थमेव सर्वज्ञाज्ञासंप्रदाय इति विचारणमाज्ञाविचयः । सर्वज्ञज्ञातार्थसमर्थनं वा हेतुसामर्थ्यात् । एवं सन्मार्गापायः स्यादिति चिन्तनमपाय
प्रश्न-रौद्रध्यान किन विषयों से होता है और किनके होता है ? उत्तर-इसीको अगले सूत्र में बतलाते हैं
सूत्रार्थ-हिंसा, झूठ, चोरी और विषय संरक्षण इन चारों निमित्तों से रौद्रध्यान चार प्रकार का है और वह अविरत देशविरत में होता है।
शंका-अविरत जीवों के हिंसा आदि हेतुओं से रौद्रध्यान सम्भव है, क्योंकि उनके हिंसादि का सद्भाव है । किन्तु देश विरत के रौद्रध्यान कैसे सम्भव है ? क्योंकि उनके हिंसादिका अभाव है ?
समाधान-देशविरत जीव के भी हिंसादि के आवेश से तथा संपत्ति धन की रक्षा हेतु स्मृति को बार बार अनुवृत्ति की सामर्थ्य से ही हिंसादि के निमित्त से होने वाला रौद्रध्यान उत्पन्न हो जाता है । अर्थात् देशविरत गृहस्थ श्रावक के धनादि के रक्षण करने के लिए हिंसा झूठ आदि के भाव होते हैं उनमें चिन्ता निरोध होने से रौद्रध्यान हो जाता है।
धर्म्यध्यान के भेद बतलाते हैं• सूत्रार्थ-आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय और संस्थान विचय ये चार धर्म्यध्यान के भेद हैं।
परीक्षा को विचय कहते हैं । अत्यन्त परोक्ष पदार्थों का निश्चय सर्वज्ञदेव की आज्ञा से करना कि इसी प्रकार सर्वज्ञ की आज्ञा है इत्यादि रूप विचार करना आज्ञाविचय धर्म्यध्यान है अथवा तर्क आदि के सामर्थ्य से सर्वज्ञ कथित पदार्थों का समर्थन