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नवमोऽध्यायः
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सामायिकच्छेदोपस्थापनापरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसाम्पराय
यथाख्यातमिति चारित्रम् ॥ १८ ॥
सामायिक सर्वसावधनिवृत्तिः सार्वकालिकी। नियतकालिकी तु श्रावकाणां शिक्षाव्रतशीलकथनकाल एवोक्ता । प्रमादकृताऽनर्थप्रबन्धविलोपे सम्यक्प्रतिक्रिया छेदोपस्थापना, विकल्पनिवृत्तिर्वा । प्राणिपीडापरिहारेण विशिष्टा शुद्धिर्यस्मिश्चारित्रे तत्परिहारविशुद्धिचारित्रम् । सूक्ष्मकषायं सूक्ष्मसाम्परायिकम् । अनादिमोहस्य संसारिणोऽवस्थान्तरे मोहोपशमक्षयकाल एवाख्यातमथाख्यातम् । तदेव यथाख्यातमित्युच्यते यथास्थितात्मस्वभावत्वात् । इतिशब्देन परिसमाप्तिवाचिना निःश्रेयसकारणपर्यन्तता यथाख्यातस्य गम्यते । तदेतत्पञ्चविधं चारित्रं प्रतिपत्तव्यम् । एवं गुप्त्यादिभिः प्रतिपादित
सूत्रार्थ-सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात ये पांच चारित्र होते हैं ।
सर्वकाल में सम्पूर्ण सावध का त्याग सामायिक चारित्र है । नियतकाल के लिये जो सावध के त्यागरूप सामायिक होता है वह श्रावकों के होता है उसका कथन शिक्षाव्रतरूप शीलों के वर्णन करते समय ही कर दिया है । प्रमाद के निमित्त से व्यर्थ के कार्य या व्रतों के लोप होने पर या व्रतों में दोष होने पर भली प्रकार से उसको दूर करना छेदोपस्थापना चारित्र है, अथवा विकल्पों को दूर करना छेदोपस्थापना चारित्र है । जिस चारित्र में प्राणियों की पीड़ा का परिहार करके विशिष्ट शुद्धि प्राप्त होती है वह परिहार विशुद्धि चारित्र है । सूक्ष्म कषाय जहां पर है वह सूक्ष्म साम्पराय चारित्र है । अनादि मोह से युक्त संसारी जीवों के मोह रहित अवस्था अभी तक नहीं हुई है जब मोह का उपशम (उपशान्त मोह) या क्षय हो जाता है (क्षीण मोह) तब 'अवस्थान्तर होता है, इसलिये 'अथ-अनन्तर' ही अर्थात् मोह के उपशम या क्षय होने पर ही आख्यात-प्रसिद्ध होता है इसलिये अथ-आख्यात इति अथाख्यात चारित्र कहलाता है अथाख्यात को यथाख्यात कहते हैं। अथवा यथा आत्म स्वभाव है तथा प्रसिद्धि-प्रगट हुआ अतः यथाख्यात नाम वाला यह चारित्र होता है। यहां पर इति शब्द परिसमाप्ति वाची है निःश्रेयसका-मोक्षका यह अन्तिम कारण है, अर्थात् यथाख्यात चारित्र की प्राप्ति के अनन्तर ही मोक्ष होता है। इस तरह पांच प्रकार का चारित्र जानना चाहिए।