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________________ १२ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तौ ज्ञानचारित्रात्मको मोक्षमार्गो मोक्षमार्गत्वान्यथानुपपत्तेस्तथाविधपाटलीपुत्रादिमार्गवदिति । तथा स्वहेतुतो मुक्तस्यात्मनः सांसारिकविनश्वरज्ञानसुखाभावेऽपि सकलकर्मक्षयोद्भूतनित्यातिशयज्ञानसुखात्मकत्वमेषितव्यमेव वैशेषिकैः । अन्यथेच्छाद्वेषाद्यभाववत्तदभावे लक्षरणशून्यस्य मुक्तात्मनोप्यभाव प्रसङ्गः स्यादुष्णत्वस्यासाधारणलक्षणस्याभावेऽग्नेरभाववत् । किंच सदाशिवेश्वरादयः संसारिणी मुक्ता वा ? यदि संसारिणस्तदा कथं तेषामाप्तता स्यात् ? अथ मुक्तास्तेऽभ्युपगम्यन्ते तर्हि क्लेशकर्मविपाकाशयैपरामृष्टः पुरुषविशेष ईश्वरस्तत्र निरतिशयं सर्वज्ञबीजमिति यत्पतञ्जलिजल्पितमन्यच्च सकता है ? नहीं हो सकता, इसलिये वेदान्ती का ब्रह्माद्वैत दर्शन जगत के भेदों के देखने वाली अविद्या के नाश को मोक्ष का हेतु मानता है वह खण्डित होता है । सौगत का सर्वथा शून्यवाद भी असत्य है, तत्त्व शून्य रूप है मैं सौगतवादी प्रमाण बल से उस शून्य तत्त्व को सिद्ध करता हूं इत्यादि कहना स्ववचन विरुद्ध है, अर्थात् सर्वथा शून्यता है तो मैं प्रमाण द्वारा शून्यता सिद्ध करता हूं ऐसा कर्त्ता करण आदि रूप ज्ञाता आदि तत्त्व सिद्ध होने से शून्यवाद स्वतः खण्डित होता है । अतः प्रमाण सिद्ध आत्मा के सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र रूप मोक्षमार्ग सिद्ध होता है, मोक्ष मार्ग की अन्यथा—अन्य प्रकार से सिद्धि नहीं है । जैसे लोक में पाटली पुत्र आदि नगर का मार्ग सिद्ध है वैसे मोक्षमार्ग भी सिद्ध है । अपने रत्नत्रय रूप कारण द्वारा मुक्त हुए आत्मा के यद्यपि सांसारिक नश्वर ज्ञान और सुख का [ कर्मजन्य मति ज्ञानादि और इन्द्रिय सुख का ] अभाव होता है किन्तु सकल कर्मों के नाश से उत्पन्न हुए नित्य सातिशय ज्ञान और सुख नियम से रहते हैं ऐसा बुद्धि आदि गुणों का अभावरूप मुक्ति को मानने वाले वैशेषिक को अवश्य स्वीकार करना चाहिये, अन्यथा इच्छा, द्वेष आदि के अभाव के समान बुद्धि आदि का भी अभाव मानते हैं तो सकल शून्यता होने से मुक्त जीव का भी अभाव हो जायगा, जैसे असाधारण लक्षण रूप उष्णत्व गुण के अभाव होने पर अग्नि का ही अभाव होता है वैसे मुक्ति में बुद्धि आदि गुणों का अभाव मानने पर मुक्त जीव का भी अभाव मानना पड़ेगा । दूसरी बात यह है कि वैशेषिक आदि ईश्वर वादी सदाशिव ईश्वर आदि को संसारी मानते हैं या मुक्त ? संसारी कहो तो उनके आप्तता कैसे होगी ? यदि उन सदाशिवादि को मुक्त माना जाता है तो क्लेश कर्म विपाक आशय से 'अछूता जो पुरुष विशेष है वह ईश्वर है, उसमें निरतिशय सर्वज्ञ बीज है ऐसा पतञ्जलि का कहना
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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