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________________ नवमोऽध्यायः [ ५२३ चारित्रमोहे नाग्नयाऽरतिस्त्रीनिषद्याक्रोशयाचनासत्कारपुरस्काराः ॥१५॥ जुगुप्सायां मोहविशेषे नाग्नयबाधा। अरतावरतिपरीषहः। पुवेदे स्त्रीबाधा। प्रत्याख्यानकषाये निषद्यापरीषहः । क्रोधे चाक्रोशः । लोभे याचना । माने सत्कारपुरस्काराभिनिवेश इति चारित्रमोहसामान्याभिधानेऽपि सामर्थ्याद्विशेषावगमः । अवशिष्टपरीषहप्रकृतिविशेषप्रतिपादानार्थमाह वेदनीये शेषाः ॥ १६ ॥ उक्ता एकादशपरीषहास्तेभ्योऽन्ये शेषा वेदनीये सति सम्भवन्तीति वाक्यशेषः । के पुनस्त इति चेदुच्यते क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकचर्याशय्यावधरोगतृणस्पर्शमलपरीषहा इति परिगणनम् । सर्वत्र चासाधारणकारणत्वं परीषहाणां विज्ञेयमन्यथोक्तप्रतिनियमाभावात् । एकस्मिन्नात्मनि युगपत्कियन्तः सत्रार्थ-चारित्र मोहनीय के उदय से नाग्न्य, अरति, स्त्री, निषद्या, आक्रोश याचना और सत्कार पुरस्कार ये सात परीषह होती हैं । जुगुप्सा नामके मोह कर्म के उदय से नाग्न्य परीषह होती है । अरति कर्म के उदय से अरति परीषह, पुरुष वेद के उदय से स्त्री परीषह, प्रत्याख्यान कषाय (सामान्य कषाय) के उदय में निषद्या परीषह, क्रोध के उदय में आक्रोश, लोभ के उदय में याचना और मान के उदय में सत्कार पुरस्कार परीषह होती है । 'चारित्र मोहे' ऐसा सूत्र में सामान्यरूप उल्लेख होने पर भी उस मोह के प्रभेद विशेष के उदय आने पर वह वह परीषह होती है ऐसा सामर्थ्य से ज्ञात हो जाता है । (यहां पर टीका में 'प्रत्याख्यानकषाये निषद्या परीषहः' यह वाक्य विचारणीय है, क्योंकि परीषह सामान्यतः बादर कषाय वाले सभी गुणस्थानों में होती है, इस दृष्टि से अनन्तानुबन्धी आदि सभी कषायों के उदय में निषद्या परीषह सम्भव है।) शेष परीषहों के कारणभूत जो कर्म प्रकृति है उसका प्रतिपादन करते हैंसूत्रार्थ-शेष परीषह वेदनीय के उदय से होती हैं। ग्यारह परीषहों के कारण कह दिये हैं, उनसे शेष जो परीषह हैं उनका कारण वेदनीय का उदय है । वे शेष परीषह कौनसी हैं ऐसा प्रश्न होने पर कहते हैं-क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंशमशका, चर्या, शय्या, वद्य, रोग, तृण स्पर्श और मल ये ग्यारह परीषह असाता वेदनीय कर्म के उदय से उत्पन्न होती हैं। पूर्वोक्त जो भी कर्मोदयरूप कारण परीषहों के बतलाये हैं वे असाधारण कारण हैं ऐसा समझना चाहिए, अन्यथा उक्त नियम नहीं बनता।
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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