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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती तत्र तेषामभिधानात् । सकलार्थसाक्षात्कारिणोऽमनस्कस्य चिन्तानिरोधाभावेपि ध्यानाभिधानवत् । कि तदुपचारनिमित्तमिति चेत्परीषहसामग्रय कदेशवेदनीय इति ब्रमहे । सर्वे व्यक्तिरूपेण क्व सम्भवन्तीत्याह
बादरसाम्पराये सर्वे ॥१२॥ साम्परायः कषायः । बादरः सम्परायो यस्य स बादरसाम्परायः । नेदं गुणस्थानविशेषग्रहणं किं तार्थनिर्देशः । तेन प्रमत्तादीनां संयतानां ग्रहणम् । तेषु ह्यक्षीणाश्रयत्वात्सर्वे सम्भवन्तीति । कस्मिन्पुनश्चारित्रे तेषां सम्भवः ? सामायिकच्छेदोपस्थापनपरिहारविशुद्धिसंयमेष्वन्यतमे सर्वेषां
समाधान-ठीक कहा ! जिनेन्द्र में जो ग्यारह परीषह कही हैं वे उपचार से कही हैं। जैसे सम्पूर्ण पदार्थों को साक्षात् जानने देखने वाले मन रहित जिनेन्द्र के चिन्ता निरोध का अभाव होने पर भी उपचार से ध्यान को मानते हैं, अर्थात् केवलीजिनके जैसे शुक्ल ध्यान उपचार से माना है वैसे ही परीषह भी उपचार से मानी हैं।
प्रश्न-उपचार से मानने में हेतु क्या है ?
उत्तर-एक देश वेदनीय रूप परीषहों की सामग्री अर्थात् कारण मौजूद होने से केवली में परीषह का उपचार किया जाता है ।
प्रश्न-सभी परीषह व्यक्तरूप से किनके कहां पर सम्भव हैं ? उत्तर-इसी को अगले सूत्र द्वारा कहते हैंसूत्रार्थ-बादर साम्पराय में सभी परीषह होती हैं।
साम्पराय कषाय को कहते हैं । बादर है साम्पराय जिसके वह बादर साम्पराय कहा जाता है। यह गुणस्थान विशेष का निर्देष नहीं है, किन्तु अर्थ निर्देश है, उससे प्रमत्त संयत आदि का ग्रहण होता है । इन प्रमत्तादि में परीषहों के कारणभूत आश्रय का सद्भाव है अतः वहां सभी परीषह होती हैं ।
प्रश्न-किस चारित्र में सभी परोषह होती हैं ?
उत्तर-सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहार विशुद्धि इन तीन चारित्र धारकों में से प्रत्येक के सभी परीषह होती हैं ।