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________________ ५१८ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती इत्यत्रोच्यते-अमी व्याख्यातलक्षणाः क्षुधादयश्चारित्रान्तराणि प्रति भाज्या:, नियमेन पुनरनयोः प्रत्येतव्याः....सूक्ष्मसाम्परायच्छद्मस्थवीतरागयोश्चतुर्दश ॥ १० ॥ सूक्ष्मसाम्परायस्य च्छमस्थवीतरागस्य च क्षुधादयश्चतुर्दशव परीषहा इति नियमादन्येषामसम्भवः । ननु च्छद्मस्थवीतरागस्य निर्मोहत्वात्तत्र चतुर्दशेति नियमोऽस्तु-मोहनिमित्तनाग्नयाऽरतिनिषद्याक्रोशस्त्रीयाचनासत्कारपुरस्काराऽदर्शनपरीषहाष्टकाभावात् । सूक्ष्मसाम्पराये तु कथम् ? मोहसद्भावादिति चेत्तन्न सूक्ष्ममोहस्य सन्मात्रत्वादकिञ्चित्करत्वात् स्वकार्यपरीषहजननाऽसमर्थत्वात् । तत एव परीषहाभावो मोहसहायस्य वेदनीयस्य क्षुधादिजनितृत्वप्रसिद्धेरिति चेन्न-शक्तिरूपेण उत्तर-ये जो कही गयी क्षुधा आदि परीषह हैं वे चारित्रों की अपेक्षा भजनीय हैं, अर्थात् अमुक अमुक चारित्र वाले की अमुक अमुक परीषह होती है ऐसा नियम हैं। इस विषय में दो स्थान विशेषों में परीषहों का नियम बतलाते हैं.... सूत्रार्थ-सूक्ष्म साम्पराय में और छद्मस्थ वीतराग में चौदह परीषह होती हैं । सूक्ष्म साम्पराय नामके दसवें गुणस्थान में तथा छद्मस्थ वीतराग अर्थात् ग्यारहवें बारहवें गुणस्थान में चौदह ही परीषह होती हैं ऐसा नियम होने से अन्य परीषहों का अभाव सिद्ध हो जाता है। शंका-वीतराग छद्मस्थ निर्मोह-मोह रहित होते हैं अतः उनमें चौदह का नियम बन जाता है, क्योंकि उनमें मोह के निमित्त से होने वाली नाग्न्य, अरति, निषद्या, आक्रोश, स्त्री, याचना, सत्कार पुरस्कार और अदर्शन ये आठ परीषह नहीं होती हैं। किन्तु सूक्ष्म साम्पराय में मोह का सद्भाव होने से चौदह परीषह का नियम कैसे सम्भव है ? समाधान-ऐसा नहीं है । सूक्ष्म साम्पराय में मोह अत्यन्त सूक्ष्म है, वह तो अस्तित्व मात्र रूप है अतः अकिञ्चित्कर होने से अपने कार्य रूप उक्त परीषह को उत्पन्न करने में असमर्थ है। शंका-यदि ऐसी बात है तो इन सूक्ष्म साम्परायादि में परीषहों का अभाव ही मानना चाहिए ? क्योंकि वेदनीय कर्म भी मोहनीय की सहायता से क्षुधा आदि परीषहों को उत्पन्न करता है, यहां पर जब मोहनीय कार्यकारी नहीं रहा तब वेदनीय भी अपने क्षुधादि कार्य को नहीं कर सकता ?
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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