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________________ ५१६ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती - संवरस्य प्रकृतत्वात्तेन मार्गों विशेष्यते । संवरो मार्ग इति । तदच्यवनार्थं निर्जरार्थं च परिसोढव्याः परीषहाः । क्षुत्पिपासादिसहनं कुर्वन्तो जिनोपदिष्टान्मार्गादप्रच्यवमानास्तन्मार्गपरिक्रमणपरिचयेन कर्मागमद्वारं वृण्वन्त प्रौपक्रमिक कर्मफलमनुभवन्त: क्रमेण निर्जीर्णकर्माणो मोक्षमवाप्नुवन्ति । तत्स्वरूपसङ्ख्यासंप्रतिपत्त्यर्थमाहक्षत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकनान्यारतिस्त्रीचर्यानिषद्याशय्याकोशवधयाचनाs लाभरोगतृणस्पर्शमलसत्कारपुरस्कारप्रज्ञाऽज्ञानाऽदर्शनानि ॥६॥ क्षधादयो वेदनाविशेषा द्वाविंशतिः । तेषां सहनं मोक्षार्थिना कर्तव्यम् । एतेषां परीषहाणां जयाः संवरहेतवः प्रतिपत्तव्याः। कर्मसाधनाश्चैते परीषहाः । तज्जयानां संवरहेतुत्वेन निर्देशात् । प्रतिज्ञातसंयमपरिरक्षणार्थं चाधिकाया अतिक्षुधः सहनं क्षुज्जयः । तथा पिपासायाः शीतस्योष्णस्य संवर का प्रकरण है, उससे मार्ग विशेषित होता है, संवर का जो मार्ग है उस मार्ग से अच्यवन हेतु और निर्जरा हेतु परीषह सहनीय होती है । जो मुनिजन क्षुधा तृषा आदि को सहन करते हुए जिनोपदिष्ट मार्ग में चलते हैं वे उससे च्युत नहीं होते हैं और इस तरह उस मार्ग पर चलने का परिचय होने से कर्मों के आगमन का द्वार रोकते हैं तथा औपक्रमिक रूप से-उदीरणा रूप से कर्मों के फलों को भोगकर क्रम से कर्मों की निर्जरा कर मोक्ष को प्राप्त करते हैं । परीषहों का स्वरूप तथा संख्या की प्रतिपत्ति के लिये सूत्र कहते हैं सूत्रार्थ-क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, दंशमशक, नाग्न्य, अरति, स्त्री, चर्या, निषद्या, शय्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मल, सत्कार पुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और अदर्शन ये बावीस परीषह होती हैं । क्षुधादि की वेदनायें बावीस हैं उनका सहना मोक्ष के इच्छुक पुरुषों को अवश्य करना चाहिए । इन परीषहों पर विजय प्राप्त करने से संवर होता है। क्षधा परीषह आदि जो शब्द या पद हैं वे कर्म साधन हैं क्योंकि परीषहों का जय संवर का हेतु कहा गया है। प्रतिज्ञा किये गये संयम की रक्षा हेतु अत्यधिक क्षुधा का सहना क्षुधा परीषह जय है । इसी प्रकार संयम रक्षा हेतु प्यास की वेदना सहना पिपासा परीषह जय है । शीत को सहना रति परीषह जय है । उष्ण को सहना उष्ण परीषह जय है।
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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